सोच सदा अच्छी रहे, दया हृदय में पास,
पाओगे परिणाम तुम, जग बन जाए दास |
स्वच्छ वस्त्र पहिनो सदा, आसन
भी हो स्वच्छ,
बस सुगन्ध हो पास में, स्वच्छ सदा हो कक्ष |
राम दरस अभिलाषा मन में,राम रहें हरदम चिंतन में,
कैसे कहें कल्पना के हैं, राम समाये सबके मन में
|
सत्य यही है, वे शास्वत हैं, रामराज्य लायें जीवन
में |
चित्रकूट जा करके देखो, कामदगिरि दे रहा गवाही,
कुछदिन शान्त भावसे रहिये, पूर्ण करो इच्छा मन चाही |
बारह
बरस राम के बीते, चित्रकूट की ही रज कण में,
कैसे
कहें कल्पना के है, राम समाये सबके मन में |
वह पथ अब भी विद्यमान है, रिस्यमूक पर्वत जा
पहंचे,
निश्चरहींन धरा को करने,अपने प्रण में जो नहिं
सकुचे |
जहाँ जहाँ वे रुके आज भी,स्थल अंकित आज नयन में |
कैसे कहें कल्पना के हैं, राम समाये सबके मन में
|
रामेश्वर शिवधाम आज भी,ज्योर्तिलिंग की है वह
प्रतिमा,
रावण विजय हेतु ही जिनने, स्थापित की उनकी गरिमा
|
रामसेतु की अब भी झांकी, सागर आकर गिरा चरण में,
कैसे कहें कल्पना के हैं, राम समाये सबके मन में
|
जो
जैसे हैं वही रहेंगे, वे ही देखें खुद दर्पण में,
कहें
कल्पना झूठ न होगी, वे रहते हरदम बंधन में |
राजनीति
के कारण ही तो,अन्तर करनी और कथन में,
यह
उनकी है,वे ही जानें, मेरा चित्त लगा दर्शन में |
सत्य यही है वे शास्वत हैं, राम राज्य लायें जीवन
में,
सारा भारत ऊँचे स्वर में, बोल रहा है नन्दनवन में
|
राम हमारे रहे, रहेंगे, सदा सर्वदा रहें मनन में
,
कैसे कहें कल्पना के हैं, राम समाये सबके मन में
|
राम दरस अभिलाषा मन में, राम रहें हरदम चिन्तन
में,
दो गवाह तैयार तो, झूठे का सब खेल,
न्यायालय
भी विवश है,सच्चा जाता जेल.
लम्वित होते मुकद्दमे, कारण बनें वकील,
निर्णय में सहयोग दें, उनसे यही अपील |
ऐसा
यदि होगा यहाँ, होंगे कम अपराध,
जग सुधरेगा देखना, पूरी
होगी साध |
अग्नि
परीक्षा बाद भी, सीता को वनवास,
प्रश्न चिन्ह है न्याय पर, कैसे हो विश्वास |
अब
शासन में चाहिये, आना कुछ बदलाव,
अपराधी
को दण्ड दें, जल्दी बिना दवाव |
नर पिशाच ये भेड़िये,घूम रहे
स्वच्छन्द,
अपराधी भी घूमते, हो करके निरद्व्न्द.
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“नारी”
होली
लिये सस्नेह हाथों में,
लगाओ प्रेम का टीका,
जला कर बैर होली में,
बढाओ प्रीति पावन तुम |
बढ़ें नजदीकियाँ हम में,
रहे उत्साह सबके मन,
फिलें चेहरे, प्रफुल्लित मन,
भुलादें भेद सारे हम |
नहीं शिकवे शिकायत हों,
गले मिल जाँय हम सबसे,
विनय है ईश से मेरी,
हमें सद बुद्धि ऐसी दे |
गले मिल जाँय हम सबसे,
नहीं हो कोई मन में भय,
नहीं शिकवे शिकायत हो,
मने त्यौहार मंगलमय |
रहे अब भाई चारा ही,
मनायें आज पावन पर्व,
सदा हों आप हर्षित मन,
सफल हो आप से परिचय |
पावनपर्व पर शुभ कामनाएं डा. हरिमोहन गुप्त
तार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह lतार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह
lतार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह
lतार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह l