Monday 27 February 2017

राम नाम

कुछ करना है जिसे धरा पर, उसे कहाँ विश्राम,
सदा कार्य रत रहने से ही मिल सकते श्री राम ,

भौतिक युग में आज व्यस्त जीवन है सबका,
इतना समय कहाँ किसको है, ले ले जो हर नाम

डॉ हरिमोहन गुप्त 

कागज पर ही लुप्त हो गये सारे वादे

 कागज पर ही लुप्त  हो  गये सारे वादे,    
 और  सामने केवल  उनके गलत  इरादे  
,आदर्शों की कसमें उनकी सभा मन्च तक,
 अन्तरमन  काले   हैं, ऊपर  सीधे  सादे  

- Dr. Harimohan Gupt

Saturday 18 February 2017

पढ़ कर,गुन कर,

पढ़ कर,गुन कर, गुण दोषों की करें समीक्षा,
समय पड़े पर आवश्यक उत्तीर्ण परीक्षा,

लेकिन इतना धीरज रक्खें शांत भाव से,
फल पाने को करना पड़ती सदा प्रतीक्षा l 

डॉ० हरिमोहन गुप्त 

Wednesday 15 February 2017

प्रेम दिवस

जाने क्यों युवाओ ने प्रेम दिवस को अपने तक सीमित कर लिया है,संत वेलैंताइन ने सभी से प्रेम करने का संदेश  दिया है ....

Tuesday 14 February 2017

फल देतें हैं सदा सभी को

फल देतें हैं सदा सभी को, वृक्ष नहीं कुछ खाते,
धरती को सिंचित करते ही,बादल फिर उड़ जाते,
प्यास बुझाती प्यासे की ही,सरिता कब जल पीती,
पर उपकारी जो रहते हैं, धन्य वही हो पाते ,,,,, 

डॉ, हरिमोहन गुप्त  

Monday 13 February 2017

कवि की पहिचान

देश,परिस्थिति और काल का
जिसको रहता ज्ञान,
साहस, शोर्य जगाने का ही, जो करता अभियान l
वैसे तो वह सरल प्रकृति का,
प्राणी है पर-
कवि मिटता है आन,वान पर
यह उस पहिचान l
डॉ हरिमोहनगुप्त

Sunday 12 February 2017

गागर में सागर को भरता

कवि ही ऐसा प्राणी है जो, गागर में सागर को भरता
केवल वाणी के ही बल पर, सम्मोहित सारा जग करता,
सीधी, सच्ची, बातें कह कर, मर्म स्थल को वह छू लेता
आकर्षित हो जाते जन जन, भावों में भरती है दृढ़ता l


डॉ. हरिमोहन गुप्त 

Saturday 11 February 2017

कविता पाठ सुनाता हूँ..

मित्रो, आज आपको अपनी आवाज़ में एक कविता पाठ सुनाता हूँ... बताइयेगा कैसा लगा... आपकी प्रतिक्रियाओं का इन्तजार रहेगा ....
सुनने के लिए नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें... 


डॉ. हरिमोहन गुप्ता जी का साहित्यिक सफ़र , शाहिद अजनबी के साथ



आपका मन पवित्र हो

केवल तन ही नहीं आपका मन पवित्र हो,
आत्म नियंत्रण, परोपकार उत्तम चरित्र हो,
सुख के साथी नहीं दुःख में साथ निभायें
बस जिनके आचरण श्रेष्ठ हों वही मित्र हो

डॉ. हरिमोहन गुप्त 

Friday 10 February 2017

रूढवादी कर्म को ही त्यागना होगा

रूढवादी कर्म को ही त्यागना होगा हमें
कर्म कांडों की क्य्वस्था को बदलना है तुम्हें .

Wednesday 8 February 2017

देश जाग्रत है सदा साहित्य से

जग प्रकाशित है सदा आदित्य से,
हम प्रगति करते सदा सानिध्य से,
कोई माने, या न माने सत्य है,
देश जाग्रत है सदा साहित्य से l

डॉ. हरिमोहन गुप्त 

Monday 6 February 2017

किरकिरी है आँख में देती चुभन

आज पीड़ा हो गई इतनी सघन,
नीर बन कर अब बरसना चाहियेl

       चारों तरफ ही मच रहा कुहराम है,
       शान्ति को मिलता नहीं विश्राम है,
       आज रक्षक ही यहाँ भक्षक हुये,
       देश की चिंता जिसे, गुमनाम है l

कर्ण धारों के हुये मिथ्या कथन,
पन्थ कोई अब बदलना चाहिये l

       रोज हत्या का बढ़ा है अब चलन,
       छवि यहाँ धूमिल, हुआ उसका क्षरण,
       हम कहाँ, कैसे, बताओ रह सकें,
       आज हिंसक हो गया है आचरण l

यह समस्या आज देती है चुभन,
हल कोई इसका निकलना चाहिए l

        प्रांत सब ज्वालामुखी से जल रहे,
        आतंक वादी अब यहाँ पर पल रहे,
        कोन रह पाये सुरक्षित सोचिये,
        आज अपने ही हमी को छल रहेl

दर्द है, कैसे करें पीड़ा सहन,
कोई तो उपचार करना चाहिये l

         आज भ्रष्टाचार में सब लिप्त हैं,
         घर भरें बस, दूसरों के रिक्त है                        
         दूसरे देशो में अब धन जा रहा,
         देख लो गाँधी यहाँ पर सुप्त हैं,l

क्या करें, कैसे करें,इसका शमन,
प्रश्न है तो हल निकलना चाहियेl

         देश तो अब हो गया धर्म आहत,
         बढ़ रहा है द्वेष, हिंसा, भय, बगावत,
         आज सकुनी फेक्तें हैं स्वार्थ पांसे,
          एकता के नाम पर कोई न चाहत l

किरकिरी है आँख में देती चुभन,
कष्ट होगा पर निकलना चाहिए 
l
          देश हित में सब यहाँ बलिदान हों,
          विश्व गुरु भारत रहे, सम्मान हो ,
          सत्य का सम्बल सदा पकड़े रहें,
          एकता में बंध, नई पहिचान हो l

आज सबसे है, यही मेरा कथन,
एक जुट हो कर, सुधरना चाहिये l
    


                 डॉ हरिमोहन गुप्त 

Sunday 5 February 2017

कागज पर ही लुप्त हो गये, सारे वादे

कागज पर ही लुप्त हो गये, सारे वादे ,
और सामने केवल इनके गलत इरादे,
आदर्शों की कसमें इनकी सभा मंच तक,
अंतर मन काले हैं, ऊपर सीधे साधे l


डॉ. हरिमोहन गुप्त 

Friday 3 February 2017

सभी मूर्तियाँ मिटटी निर्मित या केवल पाषण हैं


भोपाल से प्रकाशित ‘साक्षात्कार’ के नवम्बर अंक में प्रकाशित गीत आपके बीच साझा कर रहा हूँ -- 


सभी मूर्तियाँ मिटटी निर्मित या केवल पाषण हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           आदि काल से ही मानव ने किया स्रजन है,
           छैनी और हतोड़ी का ही किया चयन है l

           जाने कितनी प्रतिमाएं गढ़ गढ़ कर छोड़ी,
           लेकिन कुछ में श्रद्धा मान किया अर्पण है l

प्राण प्रतिष्ठा हुई तभी तो, वे जग में पहिचान हैं ,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           द्रष्टि हमारी समुचित हो बस यही मानना,
           मन पवित्र हो, बीएस वैसी ही बने भावना l

           शीष झुकाया हर पत्थर शिव शंकर जैसा.
           मन में ही विश्वास जगा, तब बनी धारणा l

घन्टे, घडियाले जब बजते, पाते तब सम्मान हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           मन्त्र जगाया हमने ही तो जन मानस में,
           श्रद्धा औ विश्वास जगाया है साहस में l

           निष्ठा और लगन ने ही जब साथ दे दिया,
           उन्हें बनाना सचमुच में अपने ही वश में l

ऊँचे आसन पर बैठाया, तब वे हुए महान हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l

           जिनको हमने पूजा वह आराध्य हो गया,
           साधन से जो मिला, वही तो साध्य हो गया l

           रोली,चन्दन, अक्षत या नैवेद्य चढाया ,
           मिली भावना, वर देने को वाध्य हो गयाl

हमने पूजा, सबने पूजा, अब देते वरदान हैं,
मात्र भावना है यह मन की, इसीलिए भगवान हैं l


-- डॉ. हरिमोहन गुप्त
  

Wednesday 1 February 2017

बसन्त त्योहार

प्रिय,
बसन्त त्योहार, भेजता तुमको पाती,
लहराती गेहूँ की बालें,
फूले सरसों के ये खेत, ,मुझको आज याद हो आती।
इन्हें देख हर्षित होता मन,
ये प्रतीक होते हैं सुख के,
मौन प्रदर्शन करते हैं जो,
मीठे फल होते मेहनत के।
ये सन्देश दे रहे जग को,
शान्ति एकता मेहनत से ही,
सुख समृद्धि सभी की बढ़ती,
त्याग तपस्या बलिदानों का,
फल सोना उगलेगी धरती।
यही खेत असली स्वरूप होते बसन्त के।
पुण्य पर्व पर लिखित पत्र यह,
कहीं भूल से प्रेम पत्र तुम समझ न लेना,
या गलती से बासन्ती रंग के कागज को,
राजनीत दल के प्रचार का ,
साधन मात्र मान मत लेना,
यह रंग तो प्रतीक है सुख का,
जो सन्देश दे रहा जग को,
सबका जीवन मंगलमय हो।
सबका जीवन मंगलमय हो।
डॉ. हरिमोहन गुप्त