Tuesday 25 September 2018

लघु कथा


 लघु कथा
 आनन्दप्रकाश को महानगर में आये अभी दस ही वर्ष हुये थे, इन्हीं वर्षों में उन्होंने अपना कारोबार बढ़ा लिया और नगर में ऐक अच्छी कोठी जिसमें कई फलदार वृक्ष थे बनवा ली थी, बेटा अच्छे स्कूल में पढ़ रहा था, पत्नी कुशल गृहणी थी और स्वयं भी “सादा जीवन उच्च विचार” में विशवास रखते थे | ऐक दिन अखबार में वास्तु शास्त्र के बारे में पढ़ थे थे तो सोचा मैं भी अपने निवास के बारे में किसी वास्तु शास्त्री से मिलूँ, यही सोच कर वे कार से ऐक वास्तु ज्ञान वाले पंडित जी के यहाँ पहुँच गये, उन्हें अपना उद्देश्य बताया तो उन्होंने कहा चल कर कोठी देखता हूँ तभी कुछ बता पाऊगा |
           कार में बैठ कर थोड़ी ही दूर चले होंगे कि उन्होंने कर रोक ली, ऐक बालक दोड़ता हुआ सडक पार कर रहा था तो सोचा अवश्य कोई दूसरा लड़का भी होगा उसे भी सडक पार कर लेने दें, आगे ऐक चोराहे के पास फिर कार रोक ली, ऐक बुढ़िया वहां आ गई उसे दस ऐक नोट दे कर कार आगे बढ़ाई, आगे उसने देखा कि रिक्से पर ऐक व्यक्ति मरीज को बिठाये अस्पताल जा रहा है, तभी उसने कार रोक कर पंडित जी से कहा दस मिनट लगेंगे इस व्यक्ति को अस्पताल तक छोड़ते चलें, उसे अस्पताल भेज कर अपनी कोठी पर पहुँचे, पंडित जी के कहने पर बाहर लान में ही बैठ गये, वहीं पास में दो बालक आम के पेड़ पर बैठे आम तोड़ रहे थे, पंडित जी बोले ये बालक आम तोड़ रहे हैं भगाओ उन्हें, आनन्द बोले “पंडित जी यदि उन्हें भगाने के लिये आवाज लगाई तो उनके गिरने का डर है, आम खा लेने दो अपने आप चले जायेंगे”|
           अब आनन्द ने पंडित जी कोठी देखने के लिये कहा तो पंडित जी बोले “आनन्द तुम जैसे अच्छे विचार वाले के यहाँ कोई वास्तु दोष नहीं हो सकता, और यदि होगा भी तो अच्छे व्यवहार और श्रेष्ठ आचरण के कारण स्वयं नष्ट हो जायेगा”| चलो अब मुझे मेरे मकान पर छोड़ दो,पर आनन्द की पत्नी ने उन्हें भोजन करा कर और दक्षिणा दे कर ही उन्हें जाने दिया |    


Tuesday 18 September 2018

करें हम जागरण


जब कभी भी यदि बिगड़ते आचरण,
स्वार्थ लिप्सा का तने यदि आवरण l                                                  तो  आज  मानव धर्म  समझाएं उसे,
दायित्व है अपना, करें हम जागरण l

Thursday 13 September 2018

पापों का परिणाम जनता,


पापों का  परिणाम जानता, व्यक्ति मृत्यु से  है  घवड़ाता ,
 व्याकुल हो  डरता रहता है, इसीलिये  हर  क्षण पछताता.
 धर्म, कर्म, सत्संग करोगे, तो भविष्य  भी  होगा उज्ज्वल,
 यदि यह हो विश्वास हृदय में, स्वर्ग,मोक्ष ही वह नर पाता.


Friday 7 September 2018

आपका दिल

इस सदी में, आपके चेहरे  पे  भी मुस्कान है,
पूंछता हूँ,दिल तुम्हारा क्या बना पत्थर का है ?

उपकारी ही धन्य होते हैं.


फल देतें  हैं  सदा सभी को, वृक्ष नहीं कुछ खाते,
धरती   को सिंचित करते ही,बादल फिर उड़ जाते l
प्यास बुझाती प्यासे की ही, सरिता लब जल पीती,
पर  उपकारी  जो  होते  हैं, धन्य  वही  हो पाते l

Sunday 2 September 2018

जहाँ चाह है, वहीं राह है.


इर्ष्या मन में जगे, समझ लो यही डाह है,
पाने  की  इच्छा हो मन में, यही चाह है l
प्रगति पन्थ पर बढने की जिज्ञासा मन में,
सत्य  यही  है, “जहाँ चाह है  वही राह है”l