Monday 9 March 2020

होली,


लिए स्नेह हाथों   में, लगाओ प्रेम  का  टीका,
जलाकर बैर होली  में, बढाओ  प्रीत पावन तुम
बढ़ें नजदीकियां हम में, रहे  उत्साह सबके मन,
खिलें चेहरे, प्रभुल्लित हों, भुला दें भेद सारे हम l
    गले मिल जाँय हम सबसे, ये दिन कल्याणकारी हो,
    नहीं शिकवे शिकायत हो, ये हो त्योहार मंगलमय |
    बढ़ें हम सब प्रगति पथ पर, यही है कामना मन की,
    सदा हों आप हर्षित बस, बढायें आप सब परिचय |
मनाएं रोज पावन पर्व, लगायें रंग हम सबको,
ये समझें सब बराबर हैं, रहें सब मस्त होली में |
रहे बस भाईचारा मन, यही हो भावना सबकी,
ये जीवन ही गुजर जाये, सदा रसमय ठिठोली में |

Sunday 8 March 2020

महिला दिवस,


महिलादिवस है आज, यह आता रहा प्रति वर्ष है,
आकाश  को  छू  लो, रहे आदर्श  तो  बस हर्ष है,
यदि प्रदर्शन, या  उपभोग  के ही लिए नारी बनी,
तो समझ लेना,  इस लड़ाई  में  अधिक संघर्ष है

Wednesday 4 March 2020

गिरगिट


बदलें मौसम के संग,
ये गिरगिट जैसे रंग |
इन पर नहीं प्रभाव हो,
चाहे कर लें सत्संग |

Monday 2 March 2020

लघु कथा


 आशीष अपने माता, पिता के साथ एक शादी समारोह से लोट रहा था कि सड़क दुर्घटना में ये तीनों शिकार हो गये, पिताजी ने तो अस्पताल पहुँचने के पहिले ही प्राण त्याग दिए, माँ और आशीष को चोटें अधिक आई थी | माँ को 15 दिन अस्पताल में रहने के बाद छुट्टी  हो गई पर आशीष को बचाने के लिये डाक्टरों को कोहनी के ऊपर दोनों हाथ काटना पड़े | मुआबजे में मिले ढाई लाख रूपये कितने दिन साथ दे सकते थे | उसी साल उसे इन्टर की परीक्षा में शामिल होना था पर भाग्य को क्या कहा जाय, उसके शिक्षक ने उसका हौसला बढ़ाते हुये उसको सुझाव दिया “ आशीष हिम्मत रक्खो तुम्हारे हाथ नहीं हैं पर पैर तो हैं,” आशीष ने दाहिने पैर के अँगूठे और ऊँगली में पेन्सिल से चित्र बनाना प्रारम्भ किया, कुछ ही दिनों के अभ्यास से देवी, देवताओं के चित्र बनाने लगा, उससे उसे जो आय हो जाती उसी को ईश्वर की कृपा मानता, माँ उसे अपने हाथों से खाना खिलाती और वह अपने पैर के सहारे चित्र बनाता अब यही जीवन का क्रम था, धीरे धीरे वह व्यक्ति को सामने बिठा कर उसका चित्र बनाने लगा इससे उसकी आय भी होने लगी और नाम भी कि आशीष चित्रकार अपने पैर से चित्र बनाता है | एक बार ग्वालियर मेले में उसने अपना स्टाल लगाया एक व्यक्ति का उसने चित्र बनाया उस व्यक्ति का ग्वालियर में एक माल था वह आशीष से इतना प्रसन्न हुआ की उसने आशीष को उसी माल में एक स्थान दे दिया, यहाँ उसका व्यवसाय अच्छा चलने लगा |
          उसकी माँ सोचती मैं तो अब बूढ़ी हो रही हूँ, अभी तक तो मैं उसे अपने हाथ से दोनों समय खाना खिलाती हूँ मेरे बाद उसका क्या होगा, हे ईश्वर! उस पर दया करना, माँ  तो चली गई पर ईश्वर ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली |
          आज पत्नी की गोद में सिर रखे आशीष कह रहा था, मैं तो ईश्वर को बहुत धन्यवाद देता हूँ कि माँ के जाते ही मुझे तुम्हारा सहारा मिल गया अन्यथा मुझे खाना कौन खिलाता ?         


Sunday 1 March 2020

हमें रहना सिखा दिया,


मैं  डगमगा  रहा  था,  बहके कदम था मैं,
ऊँगली पकड़ कर आपने चलना सिखा दिया l
             मैं बेजुबाँ  ही तो रहा, मुँह में  जवान रख,
             जुल्मों सितम ने आपके,कहना सिखा दिया l
मुँह से जपे जो राम, रख कर बगल छुरी,
उस आस्तीने साँप ने बचना सिखा दिया l
             हम कौम के हैं बाद में, पहिले हैं मुल्क के,
             फिरका परस्ती हाल  ने, लड़ना सिखा दिया l
हम भाई भाई  ऐक हैं, जो आदमी बस हो,
इस विश्व बन्धु पाठ ने, पढना सिखा दिया l
             न राम कोई और हैं, न खुदा कोई जुदा,
             गीता, कुरान  ने  हमें रहना सिखा दिया l