हमको क्या करना है जग में, लक्ष्य बनाओ निश्चित,
जीना,मरना तो जीवन क्रम,भटके, हुये पराजित |
आये हैं किस हेतु धरा पर, इस पर करिये मंथन ,
व्यर्थ जायगा यह जीवन ही, फिर क्या मिले कदाचित |
हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा, यही बात है शास्वत,
दृष्टिकोंण बदलें हम अपना, इस में है अपना हित |
गुण अन्वेषण हो स्वभाव में, हम समाज में जाएँ,
घृणा, द्वेष, दुर्भाव त्याग कर, खुद को करें समर्पित |
यही सत्य है, लालच संग्रह को उपजाता,
और स्वार्थ फिर चिनगारी बन उसे जलाता l
संग्रह तब फिर कहाँ रोक पाया लालच को,
यह मन भी बेकाबू हो कर उसे बढाता l
जिसे भरोसा अपने पर है,वही सफल होता जीवन में,
इसे आत्मविश्वास कहा है, संयम रहता उसके मन में |
बल, पौरुष, संकल्प पास में,शक्ति आपके ही भीतर है
सभी सुलझती यहाँ समस्या,समाधान मिलता है क्षण में |
वशीकरण का मन्त्र जिन्होंने, मनो योग से साधा,
उन्हें नहीं विचलित कर सकते, किन्चित विघ्न न बाधा |
सिद्धि सदा होती प्रयत्न से, करो साधना मन से,
माना था आराध्य कृष्ण को, जीत सकी थी राधा |
आस्थाहीन व्यक्ति का जग में, सच मानो कुछ मान नहीं है,
पक्ष, विपक्ष उभय में बैठे, उसकी तो पहिचान नहीं है |
कर्मठ, योग्य, साहसी ही तो, सम्मानित होते हैं जग में,
भिक्षा माँग बड़ा हो कोई, समझो उसे महान नहीं है |
विश्व बन्धु की रहे भावना, सत्कर्मो का पालन,
बिना स्वार्थ के निर्मल मन से, हो परमार्थ सुहावन |
एक एक से ग्यारह होते, तब समाज बनता है,
उसके प्रति उत्तरदायी हम, सेवा व्रत हो पावन |
जन्म भूमि हित जो मरे, उनका है सम्मान,
लिखा नाम इतिहास में, रखते निज पहिचान l
अनजाने भी लोग हैं , पर उनका है मान,
व्यर्थ कभी जाता नहीं, जनहित में बलिदान l
झूठ,कपट,छल से जिसने भी, धन वैभव को पाया,
भौतिक लाभ मिल सका उसको, पर पीछे पछताया |
उसका पतन अवश्यम्भावी, दुख उपजेगा निश्चित,
मानव के अनुरूप कर्म हों, दूर हटेगी माया |