Friday, 31 October 2025

 

भाव हैं  उदिग्न मन की  ही तपन,

साधना स्वर ही रहा संगीत का धन.

लय अगर बस छन्द का श्रृंगार कर दे,

गीत क्या  है  सृष्टि का  नूतन सृजन.

Thursday, 30 October 2025

 

धर्म  ओढ़े  ढोंग  का  ही  आवरण,

अर्थ है निज स्वार्थ  मे  अंत:करण |

मोक्ष को तुमही बतादो क्या कहें हम,

काम का जब  कर रहे हम अनुशरण.

Wednesday, 29 October 2025

 

सत्य क्या है, झूठ  का पृष्ठावरण,

कर्म है जब स्वार्थ का ही आचरण.

लोभ  ने  अपना बढाया कद यहाँ,

क्रोध का  क्या कर सकेंगे संवरण.

 

Tuesday, 28 October 2025

 

उपवन का हर पौधा सींचा, और सँभाली उसकी काया,

फल देने का मौका जब था, तो अपनों ने ही विसराया.

मतलब के सब साथी होते, सेवा से क्या उनका नाता

चलता आया आदि काल से, ऐसी ही है उसकी माया,

Monday, 27 October 2025

मीठी बातें  बगल  छुरी कायही  अर्थ है,

मिले  अनादर, तिरिस्कार होता अनर्थ है.

घुटनों के बल चले,किसी को वह ललकारे,

                                                   बन्दर घुड़की सुनी, सोच लो सभी व्यर्थ है. 

Sunday, 26 October 2025

                                              बिन सत्संग विवेक नहीं  हो, ऐसा कथन सटीक  रहा है,

इसीलिये सत्संग करो तुम, “ज्ञान बिना गुरुयही कहा है.

वह ही  मार्ग प्रदर्शक  बन कर, सीधी सच्ची राह दिखाता,

गुरु का उपदेशामृत पाकर, बिन प्रयास ही प्रभु मिल जाता.

 

Saturday, 25 October 2025

 

केवल  यादें शेष, आत्म सुख था बचपन  में,

बोझा ढो ढो चले, कटा  यौवन  बन्धन  में.

बीती ताहि विसार सोच  लें  शुभ हो कल ही,

बस सुख से कट जाय बुढ़ापा प्रभु चिन्तन में.

Friday, 24 October 2025

 

होड़ लगी है  आज जगत में, कैसे  हम आगे आ जाएँ,

कुचल रहे हैं  पीड़ित प्राणी, लेकिन  वे  हमको बहकाएं.

गिरते गिरते जो  भी  उठते, सच मानो  वे  आगे बढ़ते,

नहीं आदमी जो अपने हित, बहका कर जग पर छा जायें.

Wednesday, 22 October 2025

                                                          आबरू इसमें  न  खींचे फिर कोई चोटी,

भाग्य है जो जी सकूँ बस जिन्दगी छोटी.

पाप परिभाषित  करूँ  सामर्थ  के बाहर,

    पुण्य है जो मिल सके दो वक्त की रोटी.   

Monday, 20 October 2025

 

दीपावली की शुभ कामनाएं

 

बना कर देह का दीपक,

जलाओ स्नेह की बाती,

मिटे मन का अँधेरा भी,

प्रकाशित हो  धरा सारी|

दिवाली रोज  मन जाये,

बढ़े धन धान्य जीवन में,

प्रभुल्लित आप  रह पायें,

यही शुभकामना मन की |

हमें  सद  बुद्धि  ऐसी दें,

करें   उपकार  जीवन  में,

बढ़ें हम सब प्रगति पथ पर,

   यही है  चाह  बस मन में  |

निरोगी आप तन मन से,

करें  निस्वार्थ  सेवा  भी,

रहूँ  स्मृति पटल  पर मैं,

यही  है  प्रार्थना  सब से |

यही है प्रार्थना मेरी |

 

हरिमोहन गुप्त

 

                                

Saturday, 18 October 2025

 

काव्य जगत में कवि को वृह्मा,बतलाया है विज्ञ जनों ने,

जो भी रुचिकर देखा समझा, उतरा  वह उनके वचनों में l

अच्छी कृति लिखने वालों की, काया मरती नहीं कभी भी

जरा मरण से हीन अमर हो, कीर्ति सुयश फैले अपनों में l

Friday, 17 October 2025

देश, परिस्थिति और काल का, जिसको रहता ज्ञान,

साहस, शौर्य जगाने  का  ही, जो करता अभियान l

वैसे  तो वह सरल प्रकृति का, प्राणी है इस जग में

कवि मिटता  है आन वान  पर, यह उसकी पहिचान |