काव्य अलंकृत है यदि कोई, नहीं
जरूरत अलंकार की,
सुन्दरता संग मोहक छवि हो, नहीं
जरूरत कंठहार की |
प्राणी
का गुण कर्म सदा प्रतिबिम्ब रहा
है जग में,
सरल सौम्यता,सम्यक वाणी, नहीं जरूरत अहंकार की |
परछाईं
के पीछे भागो, नहीं
पकड़ में आये,
उसे छोड़
कर आगे जाओ, तो वह
पीछे धाये|
माया, ममता, और तृषा
का यही हाल है मानो,
उसके प्रति बस मोह छोड़ दो, मन
आनन्द समाये |
मन में बस जाग्रत करना है,उच्च
भावना,
कठिन परिश्रम से ही मिलती है सराहना |
उसके संग संग ईश कृपा भी है आवश्यक,
सदा तपस्या
से ही होती पूर्ण साधना |
योग्य हितेषी मित्र मिल सकें, कम
होता है,
औषधि गुण कारी, मीठी
हो, कम होता है|
स्वार्थ सिद्धि में ही डूबे हैं, प्राणी जग के,
अपनापन कोई दिखलाये, कम होता है |
विद्वान से शोभा सभा की, बात
यह सब जानते,
वृद्ध सम्मानित सभा में, बात
यह सब
मानते |
है कथन यह बुद्धिमानों का, नहीं
जाना उचित है,
जो, आप में क्षमता, कुशलता
को नहीं पहिचानते |