Monday 19 October 2020

 

 

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      ओ आफताब,

     अगर तुम्हें घमण्ड है प्रकाश का,

     तो समेटो अपनी रश्मियों  को,

     हम भारत के हैं,

    नया सूरज उगाना जानते हैं।

    तुम्हें तो राहु ग्रसता है,

    लोग जाने न जाने,

    हम तुम्हें पहिचानते हैं।

    तुम केवल दिन में ही उजाला देते हो,

    हम रात दिन दिव्य ज्ञान की-

    प्रकाश रश्मियाँ जन जन तक पहुँचाते हैं।

    तुम्हारा अंहकार मिथ्याभ्रम और खोखला है,

    तुम अपने पास आने ही किसे देते हो ?

    जो साहस करते हैं,

    वे सम्पाती की भाँति पंख जलाते हैं।

    ऐक हम हैं कि लोगों को पास बुलाते हैं,

    उन्हें दिव्य ज्ञान बाँटते हैं,

   तभी तो लोग हमे पूजते हैं।

   अंजनिपुत्र हनुमान ने मिथ्याभिमान तोड़ कर,

   तुम्हें समूचा निगला था।

   अब बचा ही क्या है तुमहारे पास,

   जिसका तुम अभिमान कर सको,

  वैसे भी जहाँ तुम नहीं पहुँच पाते,

  वहाँ कवि पहुँचता है।

 

डा० हरिमोहन गुप्त 

Sunday 18 October 2020


मात भू

मात भू के लिये हो गये जो हवन,                        

उन शहीदों को मेरा है शतशत नमन।

         ज्ञात जो हैं अधिक उनसे अज्ञात हैं,

आज केवल अधर पर ही जजवात हैं।

हैं हजारों, जिन्होंने है झेला दमन,

उन शहीदों के मेरा है शतशत नमन।

हम तो सोये मगर वे जगे रात में,

हम जगे, सो गये वे मगर रात में।

कर्ज माँ का चुकाया हो गये वे दफन,

उन शहीदों को मेरा है शतशत नमन।

 देश सेवा ही जिनका रहा ध्येय था,

उस गुलामी में रहना जिन्हें हेय था।

देश बलिदान हित जिनने बाँधा कफन,

आज उन पर निछावर हैं लाखों रतन।

हिन्द मेरा, हटो तुम ये ऐलान था,

संगठित हैं सभी, शत्रु हैरान था।

उसका पालन किया, जो दिया था वचन,

उन शहीदों को मेरा है शतशत नमन ।

याद आती हमें उनकी कुर्बानियाँ,

अब तो घरघर बजी आज शहनाइयाँ

आज उन पर निछावर ये लाखों हैं तन।

पुष्प अर्पित उन्हें कब है सूना चमन।

प्रगति हेतु, जुट जायें ज्ञानी जन।

डा० हरिमोहन गुप्त 

Saturday 17 October 2020

 

 

 

                 है नमन उनको

है नमन उनको कि जिनकी, वीरता ही खुद  कहानी,

देश हित में  प्राण दे कर, होम  दी  अपनी जवानी |

 कर्ज भारत भूमि का है, प्रथम मैं पूरा करूंगा,

माँ वचन मेरा तुम्हें, मैं लौट कर शादी रचूंगा |

पर निकट  उत्सर्ग मेरा, पुत्र तेरा  स्वाभिमानी,

माँ मुझे तुम क्षमा करना, जा रही है यह निशानी |

पापा वचन “सौ मार कर, होना निछावर देश पर,

याद  है,  मारे हजारों, कप्तान के  आदेश  पर |

किन्तु घायल हो गया हूँ, हो रही है अब रवानी,

कष्ट मुझको है नहीं अब, नींद  आयेगी सुहानी |

कह के आया, आऊँगा, इस  वर्ष  सावन  में,

सूनी कलाई जा रहा, दृढ संकल्प ले  मन में |

देश सर्वोपरि हमारा, फर्ज की कीमत चुकानी,

अब मुझे होना निछावर, वीरता मुझको दिखानी |

 कर्म पथ पर बढ़ चले जो, याद उनकी आज घर घर,

जब जरूरत आ  पड़ी तो, वे  गये आदेश  पा कर |

सुमन श्रृद्धान्जलि समर्पित, मूक होती आज वाणी,

देश पर होंगे निछावर, बस यही अब कसम खानी |

देश हित में प्राण दे कर, होम दी अपनी जवानी,

है नमन उनको कि जिनकी, वीरता ही खुद कहानी |

डा० हरिमोहंगुप्त 

Friday 16 October 2020

 

 

                                                              मेरी पीड़ा के सम्मुख

मेरी पीड़ा के सम्मुख कम, सागर की गहराई,

ऐसी रही अभागिन, जिसने नहीं सुनी शहनाई |

 

दी गुलाब को खुशबू हमने, काँटों को अपनाया,

सुधा बाँट दी वैभव में ही, गरल कण्ठ ने पाया |

सब नाते,रिश्ते ही सुख के, अब तो झोली खाली,

सुख बाँटा ऊँचे महलों में, मिला दु:ख का साया |

 

मेरे दर्दों से कम अब भी,अम्बर की ऊचाई,

मेरी पीड़ा के सम्मुख कम, सागर की गहराई |

 

अविश्वास के कारण ही तो,रहा अभागा मेरा जीवन,

मैंने अपनी उम्र गुजारी, नहीं मिला मुझको अपनापन

जिसके लिये समर्पित जीवन, दूर हुये नजरों से वे ही,

उम्मीदें ही खो बैठा मैं, कैसे हो अपना हर्षित मन |

 

अब तो डर लगता है सच में, विकृत हुई परछाईं,

मेरे दर्दों से कम अब भी, अम्बर की ऊचाई |

 

ऐसा था विश्वास हमारा, हर बगिया में फूलखिलेंगे,      

 एक दूसरे के स्वागत में,पलक पाँवड़े यहाँ बिछेंगे      

 बनी परिस्थितऐसी जिसमें, अपने ही अब दूर हो गये,

नहीं कल्पना की थी मन ने, सपने सभी यहाँ बिखरेंगे |

अब तो पतझड़ के मौसम में, बगिया सब मुरझाई |

मेरी पीड़ा के सम्मुख कम, सागर की गहराई |

 

डा० हरिमोहन गुप्त 

Thursday 15 October 2020

 

              शहीदोंतुमको मेरा नमन

ज्ञात और अज्ञात शहीदोंतुमको मेरा नमन,

साथियो तुमको मेरा नमन

|न्योछावर हो गये देश पर,

अर्पणकर तन मन,

तुमने सच्चे मन से माना भारत माता,             

अन्त समय तक तुमने रक्खा उससे नाता,

प्राणो का उत्सर्ग सहज हीपाला ऐसा प्रण।

निभाया, तुमने दिया वचन।शहीदों, तुमको मेरा नमन l

तिलक लगा कर माता ने भेजा था रण में,

बहिनों ने राखी बाँधी तुमको सावन में l

भारत की रक्षा करना है,माँ का यही कथन ,

शहीदो तुमको मेरा नमन l

दे कर के सौभाग्य तिलक पत्नी ने भेजा,

रक्षा का ही भार स्वयम ही तुम्हे सहेजा l

भारत की रक्षा को करते ,होम दिया योवन ,

,शहीदो तुमको मेरा नमन l

था स्वदेश से प्रेम, उसी हित डंडे खाये,

सहीं यातनाएं फिर भी कब घवडाये l

मातभूमि की रक्षा के हित,तोड़ दिये बन्धन,

शहीदो तुमको मेरा नमन l

श्रृद्धांजलि अर्पित करते भारत के जन जन,

आज तुम्हारे ही कारण से मिला हमे जीवन l

समर्पित तुमको श्रद्धा सुमन ,

शहीदो तुमको मेरा नमन l

 डा० हरिमोहन गुप्त 

Tuesday 13 October 2020

 

आज पीड़ा हो गई इतनी सघन,

नीर बन कर अब बरसना चाहियेl

    चारों तरफ ही मच रहा कुहराम है,

       शान्ति को मिलता नहीं विश्राम है,

       आज रक्षक ही यहाँ भक्षक हुये,

       देश की चिंता जिसे, गुमनाम है l

कर्ण धारों के हुये मिथ्या कथन,

पन्थ कोई अब बदलना चाहिये l

       रोज हत्या का बढ़ा है अब चलन,

       छवि यहाँ धूमिल, हुआ उसका क्षरण,

       हम कहाँ, कैसे, बताओ रह सकें,

       आज हिंसक हो गया है आचरण l

यह समस्या आज देती है चुभन,

हल कोई इसका निकलना चाहिए l

        प्रांत सब ज्वालामुखी से जल रहे,

        आतंक वादी अब यहाँ पर पल रहे,

        कोन रह पाये सुरक्षित सोचिये,

आज अपने ही हमी को छल रहेl

दर्द है, कैसे करें पीड़ा सहन,

कोई तो उपचार करना चाहिये l

         आज भ्रष्टाचार में सब लिप्त हैं,

         घर भरें बस, दूसरों के रिक्त है                        

         दूसरे देशो में अब धन जा रहा,

         देख लो गाँधी यहाँ पर सुप्त है |

क्या करें, कैसे करें,इसका शमन,

प्रश्न है तो हल निकलना चाहियेl

       देश तो अब हो गया धर्म आहत,

         बढ़ रहा है द्वेष, हिंसा, भय, बगावत, 

         आज सकुनी फेकते हैं स्वार्थ पांसे,

          एकता के नाम पर कोई न चाहत l

किरकिरी है आँख में देती चुभन,

कष्ट होगा पर निकलना चाहिए l

          देश हित में सब यहाँ बलिदान हों,

          विश्व गुरु भारत रहे, सम्मान हो ,

          सत्य का सम्बल सदा पकड़े रहें,

          एकता में बंध, नई पहिचान हो l

आज सबसे है, यही मेरा कथन,

एक जुट हो कर, सुधरना चाहिये l