Friday 31 December 2021

नव वर्ष

 



 

 

 

 

 


 

नया वर्ष

आया है नया वर्ष, करते हम अभिनन्दन,

हम से जो अग्रज हैं, उनका करते वन्दन।

छोटों को शुभाशीष, मंगलमय हो जीवन।

प्रेम सदाफूले बस, हम सब उत्साही हों,

प्रगति मार्ग जो भी हो, उस पथ के राही हों,

हम उँचाई छू  लेंगे, नित प्रयास हों नूतन ।

गत को हम क्या देखें, देखें हम आगत को,

उत्सुक है नव प्रभात,हम सबके स्वागत को।

शुभ चिन्तक जो भी हैं, देखें हम अपनापन,

आया है नया वर्ष, करते हम अभिनन्दन।

जग में प्रसिद्धि के कीर्तिमान तोड़े हम,

भर दें उजयारे को, छूट जाये सारा तम।

मिट जाये अहंभाव, धुल जाये अन्तरमन।

द्वेष, बैर भूलें सब, छोटों को अपनायें,

प्रेम बीज बो कर हम,बगिया को महकायें।

मन मन्दिर अपने ही, बन जायें वृन्दावन।

ज्ञानवान, बुद्धिमान,प्रभा ओजस्वी हों,

शरदं शतं जीवेत, आप सब यशस्वी हों।

विनती है प्रभु से बस, बन जायें वे साधन।

उत्तर से दक्षिण तक,हिन्दी सब की भाषा,

पूरबसे पश्चिम तक, सुदृढ़ रहे यह आशा।

Wednesday 22 December 2021

श्रद्धांजलि



           एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

  एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 2       एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 2       एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 2       एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

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 2एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

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      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

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      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

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      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

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      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

 

 

 

  

 एक प्रश्न जाग्रत था मन में,

      मानव क्या जिन्दा रहता,
      मर कर भी इस जग में ?
     रुक जाती है साँस, हृदय स्पन्दन रुकता,
     लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
     गूँज रहे रग रग में।

     मेरा कुछ ऐसा विचार है,
     मानव के ही कर्म ओर गुण जिन्दा रहते,
     मिट्टी की यह देह मरे, मर जाये तो क्या?
    जग के सम्मुख, वाणी के स्वर ,
    मानवता जिन्दा रहती है।

    जब तक हममें,
    सत्य अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
    धरा पर धर्म कहाये
    विश्व बन्धु का पाठ,परस्पर प्रीति बढा कर,
    सुख समृद्धि शान्ति हित जीवन,

    सन्तत ऐसी फसल उगाये।

   हिन्दू, मुसलमान, ईसाई,
   हरिजन को भी गले लगा कर,
   कहें परस्पर भाई भाई।
   ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
       तो गाँन्धी जिन्दा हैं मानो
       हम सबके ही तन में।

       इसीलिये तो शायद गाँधी नहीं मरे हैं,
       नहीं मरेंगे।
       युग युग तक उनके चरणों में ,
      जाने कितने शीष झुकेंगे।