Saturday 25 September 2021

मुक्तक

 

सत्साहित्य सदा कवि लिखता, चाटुकारिता नहीं धर्म है,

वह उपदेशक है समाज का, सच में उसका यही कर्म है l

परिवर्तन लाना  समाज  में, स्वाभाविक बाधाएँ  आयें,

कार्य कुशलता के ही कारण, सम्मानित है, यही मर्म है l

        आदि काल से बहता आया, नहीं रुका नदियों का पानी,

        सदा सत्य का मार्ग प्रदर्शन, करती है मुनियों की वाणी |

       कवि भी नई दिशा देता है, सदा राष्ट्र जाग्रत करने में,

       उसका हृदय बहुत कोमल है, इसीलिए जग में सम्मानी |

केवल मनोरंजन नहीं कवि धर्म है,

साहित्य दे कुछ प्रेरणा कवि कर्म है |

कर्तव्य पथ पर कवि चले, यह सोच ले,

सम्मान पायेगा सदा यह मर्म है |

 

   वही लेखनी धन्य हो सकी, सार तत्व  जिसने  दे  डाला,

   स्वाभिमान कवि का जिन्दा है, उसने अपने व्रत को पाला |

   सजग देखता और जगाता, वह ही कुछ कह पाता जग से,

   बंद कपाट किये  बैठे जो, उनका  भी  खुल जाता ताला |

 

 

Saturday 18 September 2021

प्रभु की कृपा अपार

  सुनो जी प्रभु की कृपा अपार,

     निस्पृह हो कर कर्म करो तुम,यह गीता का सार l

     गूँगे  बोलें, बधिर  सुन सकें, पंगु चलें पथ भाई,

     राई  को  पर्वत  कर  देता,  पर्वत  करता क्षार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार  l

     पल  में  राजा रंक बने, या रंक  बन सके राजा,

     अदभुत  लीला  उसकी  भाई, जाने  ना  संसार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     अपने कर्मो  का फल ढोता,  हो   करके लाचार,

     उसकी  कृपा अगर मिल  जाये, होता बेड़ा  पार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     मिथ्या जग यह  माया ठगनी, दर दर भटक रहे हैं,

     जो  जिसका प्रारब्ध मिले  बस, ऐसा  करो विचार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     “सत्य वद धर्ममचर “ श्रुति का है  सिद्धान्त सदा से,

      इसका  ही  तुम पालन  कर लो, बाकी सब बेकार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     जीवन थोड़ा काम अधिक  है, ऐसा  ही तुम जानो,

     प्राणी कर  सत्कर्म  यहाँ पर, करता  मैं  मनुहार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     काम  क्रोध  को  जीत, मोह  माया  को  त्यागो,

    मान  गये  यदि  बात  हमारी,  हो  जाए  उद्धार l

    सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l    

9

मैं क्या लिखता,राम लिखाता,वही स्वयम लिख जाता l

उर  में  वह  ही भाव जगाता, श्रेय मुझे मिल जाता l

   मैं  भजता  हूँ  राम नाम को, बस  उससे है  नाता,

  अगर अँधेरा  पाता  मग  में, वह  ही  राह दिखाता l

मेरा  जीवन राम भजन  में,  सच  मानो कट जाता,

क्या लेना इस लौकिक जग से,दुख में भी सुख पाता l

  सब आडम्बर छोड़ जगत के, मन  को  यह समझाता.

 जीवन धन्य  मानता  मैं  हूँ, बस  उसके  गुण गाता l

निराकार  है, निरालम्ब  है, वही  ऐक  है  ज्ञाता,

जितना उसे चलाना मुझको, उतने पग  धर पाता  l

 ऊँगली  मेरी  कर  में  पकड़े, वह  ही  भाग्य विधाता,

लोभ, मोह का  चक्कर छोड़ो, क्यों  मन को भरमाता ?


Tuesday 14 September 2021

    14 सितम्बर १९४९ को हिन्दी राष्ट्र भाषा घोषित की गई थी, पर इसे दुर्भाग्य ही माने कि सन २०२१ तक वह सम्मान जनक स्थान नहीं प्राप्त कर सकी | क्या कारण है उह सर्व विदित है कि राजनैतिक स्वार्थ आड़े आ जाते हैं |कल हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर मैनें हिन्दी दिवस से सम्बन्धित कुछ मुक्तक फेसबुक पर आप तक पहुंचाने का प्रयास किया था |     आज 14 सितम्बर  को पुन: कुछ यथार्थ लिख रहा हूँ, इसे व्यंग न मानें, विशवास है आप सभी इससे सहमत होंगे |

हिन्दी  दिवस   

    राष्ट्र  भाषा  है, मगर  क्यों  आज  है  वेबस,

    ज्ञान में अभिव्यक्ति में पीछे छिड़ी इस पर बहस |

    तीन सो चोंसठ दिनों  तो  रोंयगे  हिदी को हम,

    एक दिन है आज का हंस कर मने “हिन्दी दिवस” |

 

    आज फिर वातावरण क्यों हो रहा नीरस,

    हिन्दी तुम्हारा भाग्य है, जो मिल रहा अपयश |

    भाषणों  में  पा  रही  सम्मान, गौरव  तुम,

    औपचारिकता करें पूरी, मने “ हिन्दी दिवस” |

 

      आंग्ल भाषा एक नम्बर पर रहे, रही यह कसमकस,

      देश को तो एक रखना है, यही तो  सोचते सब |

      मिल सके बस कागजी सम्मान इस पर सोचते हैं,

      बात सत्ता  से  तो  पूंछो, चाहिए कितने  बरस ?

हम

Monday 13 September 2021

 

                

हिन्दी  दिवस   

 जग को करे प्रकाशित सचमुच हिन्दी का साहित्य,

बुन्देली अरु ब्रज भाषा का इसमें है लालित्य |

करें समाहित भाषाओं को, रखे ब्याकरण हिन्दी,

हिन्दी भाषा का सम्बर्धन, ऐसा हो साहित्य |

 

2- हिन्दी भाषा सरल, लिखा ही पढ़ते हैं सब,

   बोल चाल में शिष्ट, ऊँचाई चढ़ते हैं सब |

   संस्कृत भाषा जननी इसकी रही सदा से,

   इसके सम्बर्धन से आगे बढ़ते हैं सब |

 

3-  हमने जो इतिहास पढ़ा है, साहस शोर्य जगाया जाये,

    संस्कृत ही जननी हिन्दी की, इसको ही समझाया जाये  

     भाषा सबकी ही हिन्दी हो, ऐसी आग लगाई जाये,

     जन मन की भाषा है हिन्दी, ऐसा भाव बताया जाये |

 

 

 

4-  काव्य रचना में अनोखी शक्ति है,

    जो जुड़ा उससे सुवासित भक्ति है |

    जोड़ती  हिन्दी सदा  सद्भाव  से,

    बोलने की बस सहज अभिव्यक्त