हो
स्वतन्त्र,निष्पक्ष तो, सफल रहे अभियान,
मत देना अनिवार्य है, तभी
रहेगा मान |
वोट
डालने से
यहाँ, बनती है सरकार,
चुन
कर भेझें हम उन्हें,गुणी योग्य दमदार |
होली
लिये सस्नेह हाथों में,
लगाओ प्रेम का टीका,
जला कर बैर होली में,
बढाओ प्रीति पावन तुम |
बढ़ें नजदीकियाँ हम में,
रहे उत्साह सबके मन,
फिलें चेहरे, प्रफुल्लित मन,
भुलादें भेद सारे हम |
नहीं शिकवे शिकायत हों,
गले मिल जाँय हम सबसे,
विनय है ईश से मेरी,
हमें सद बुद्धि ऐसी दे |
गले मिल जाँय हम सबसे,
नहीं हो कोई मन में भय,
नहीं शिकवे शिकायत हो,
मने त्यौहार मंगलमय |
रहे अब भाई चारा ही,
मनायें आज पावन पर्व,
सदा हों आप हर्षित मन,
सफल हो आप से परिचय |
पावनपर्व पर शुभ कामनाएं डा. हरिमोहन गुप्त
तार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह lतार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह
lतार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह
lतार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
ऐसे घर
भी कलह से, हो जाता बेजार l
मात,
पिता को बाँटते, कैसे हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह l
घर के भीतर बैठकर, व्यर्थ मचाते शोर,
इस
पर मंथन तो करो, भारत क्यों कमजोर l
प्रजातन्त्र पलता यहाँ, सभी
इरादे नेक,
मानवता के नाम पर, नहीं हो सके ऐक l
प्रजा
तन्त्र में अब यहाँ, सुनता कौन पुकार,
आपा
धापी हो
रही, मचता हाहा कार l
सरे आम अब हो रहा, गुंडों का
उत्पात,
शासन तक उनकी पँहुच, कोन करे अब बात l
गाली
आभूषण बनी, उनकी है
सरकार,
किसकी
हिम्मत आ सके, बीच बात तलवार l
भला चाहते दीजिये, हफ्ता गुण्डा टेक्स,
दान पात्र में डालिये, होना अगर
रिलेक्स l
सब
प्रदेश अब जल रहे, दंगा है अब आम,
लोक
सभा को जीतना, उससे हम को काम l
कोई
विधि अपनायंगे, रीत गहें अनरीत,
आबादी
मरती रहे, जो अपने, सो मीत l
वही
सिर्फ अपने यहाँ, गाए जो भी गीत,
पार्टी
मुखिया हमीं हैं, यह ही है जगरीत l