Sunday 31 May 2020

फर्ज


हम करें उनको नमन बस,कीर्ति ही जिनकी कहानी,
देश हित में  प्राण दे कर, होम  दी  अपनी जवानी |
         कर्ज भारत भूमि का है, प्रथम मैं पूरा करूंगा,
         माँ वचन मेरा तुम्हें, मैं लौट कर शादी रचूंगा |
पर निकट  उत्सर्ग मेरा, पुत्र तेरा  स्वाभिमानी,
माँ मुझे तुम क्षमा करना, जा रही है यह निशानी |
         पापा वचन “सौ मार कर, होना निछावर देश पर,
         याद  है,  मारे हजारों, कप्तान के  आदेश  पर |
किन्तु घायल हो गया हूँ, हो रही है अब रवानी,
कष्ट मुझको है नहीं अब, नींद  आयेगी सुहानी |
         कह के आया, आऊँगा, इस  वर्ष  सावन  में,
         सूनी कलाई जा रहा, दृढ संकल्प ले  मन में |
देश सर्वोपरि हमारा, फर्ज की कीमत चुकानी,
अब मुझे होना निछावर, वीरता मुझको दिखानी |
         कर्म पथ पर बढ़ चले जो, याद उनकी आज घर घर,
         जब जरूरत आ  पड़ी तो, वे  गये आदेश  पा कर  |
सुमन श्रृद्धान्जलि समर्पित, मूक होती आज वाणी,
देश पर होंगे निछावर, बस यही अब कसम खानी |
                   देश हित में प्राण दे कर, होम दी  अपनी जवानी,
                हम करें उनको नमन बस, कीर्ति ही जिनकी कहानी |
 



Friday 29 May 2020

अपना गाँव


जाकर देखेा, गाँवों के वे कुआँ, नदी, तालाब, झील सब,
तुमको लगता पानी, मेरे लिये वही तो गंगाजल है।
         बिरिया, झरिया के हैं बेर,यहाँ वहाँ, खेतों की मेंड़ों पर,
         गदराते हैं आम, और जामुन, खाते हैं ऊपर चढ़ कर।
तुमको लगते होंगे खट्टे, मुझको मीठे अमृत फल है।
तुमको लगता पानी, मेरे लिये वही तो गंगा जल है।
         मिट्टी में सोंधापन हर अषाड़ में, कभी खुला आकाश,
         खेत किनारे ही बबूल पर, रात जुगनुओं का प्रकाश।
भले तुम्हें तो लगे अँधेरा, राह दिखाने को सम्बल है।
         पंछी  के कोलाहल,  भोंरों की  गुंजन,  सुबह शाम  को,
         ये भरते आनन्द मनों में, ताजा करते पुऩः काम को।
तुमको कैसा लगता, पर सच में, आनन्द यहाँ प्रतिपल है।
        गाँवों की गलियाँ, हरयाली खेतों की, मन प्रसन्न करती,
        यहाँ प्रदूषण मुक्त वायु, आपस में सद्भाव सदा भरती।
अगर देखना भीड़ यहाँ, शाम को, चोपालों पर हलचल है।
       घर  आँगन  की  सब्जी,     दालें, बस कढ़ी भात संग,
      छप्पन व्यंजन से भी बढ़ कर, खाते हैं जब बैठें संग संग।
  तुमको कैसा लगे, यहाँ तो होता सब का ही मंगल है।
      होली और दिवाली, सावन सभी मनाते वे सब मिल कर,
      साँयकाल बैठ कर गाते, भजन सुनाते वे सब मिल कर।
सीधे सच्चे परम हितेषी, भाव यहाँ मन में निश्छल है।
      आपस में मिल कर रहते, वे लड़ाई झगड़ा क्या जाने ?
      सभी बराबर ,ऊँच नीच का, भेदभाव भी कब वे मानें ?
तुम मानो या ना तुम मानो, पंथ यहाँ का यही सफल है।
      गृह कुटीर  उद्योग  यहाँ  पर,   आवश्कता पूरी करते,         
      सादा जीवन कम इच्छायें, स्वाभिमान को जीवित रखते।
व्यस्त सभी हैं, अति प्रसन्न हैं, भाग्य यहाँ  सबका उज्जवल है।
     चन्दन, हल्दी के उपटन से , निखरी जिसकी कोमल काया,
      हाथों पावों में मेंहदी,  माथे पर  बिन्दी से  उसे सजाया।
तुमको क्या लगता क्या जानें? उसमें भाव भरा निश्छल है।
सदा नगर से दूर गाँव में, होता सबका ही मंगल है

Thursday 28 May 2020

सम्मानित हैं आप

सम्मानित हैं आप
सम्मानित हैं आप, सुरा पी  लें  मन चाही,
मेरी क्या  मैं  अक्सर दर्द पिया  करता हूँ.
तुम समर्थ हो, कोरे आश्वासन  दे  सकते,
फटे हाल  मैं, अपने  फर्ज  किया करता हूँ.
            राम राज्य हो, ऐसा गांधी का था सपना,
            रहें बराबर  सभी यहीं, भारत  है अपना.
            उनका जो था  स्वप्न, नहीं पूरा हो पाया,
            होड़ लगी है यहाँ आज, अपना घर भरना.
अमन चैन हो बस समाज में, इसीलिये तो,
औरों के दुख, अपने नाम  लिया करता हूँ.
            सबका साथ, विकास बहुत अच्छा है नारा,
            करें आचरण, तो  होगा  कल्याण हमारा |
            सत्तर सालों से तो  हम सब  देख रहे हैं,
            आज आदमी क्यों?  फिरता है मारा मारा.
देख देख कर गतिविधियाँ, जन प्रिय नायक की,
आश्वासन  का  कडुआ घूँट  पिया   करता हूँ.
            वादे  होंगे  पूरे  यह तो  सब  कहते  हैं,
            कब होंगे? बस इस पर तो वे चुप रहते हैं.
            आगे बढना है तो हम सब त्याग करेंगे,
            कुछ पाना है, पहिले कष्ट सभी सहते हैं.
फटे हुये कुरता पाजामा हैं अब जन जन के,
स्वयं बैठ  कर  मैं पेबन्द सियां  करता हूँ.
           सम्मानित हैं आप, सुरा पी  लें  मन चाही,
           मेरी क्या  मैं  अक्सर दर्द पिया  करता हूँ.
डा० हरिमोहन गुप्त, अध्यक्ष हिन्दी साहित्य सम्बर्धन

Wednesday 27 May 2020

लाक डाउन के समय


 लाक डाउन के समय अप्रैल, मई सन 2020
                हमको तो बस घर जाना है, हो कितनी भी दूर,
                पैदल ही  हम चले जाँयगे, हम तो  हैं मजबूर |
                शासन कहता करें व्यवस्था, भेजें  रेल, बसों से,
                लेकिन उनको जल्दी इतनी, माने  ना  मजदूर |
                  बीबी बच्चे साथ  आपके, बहुत  दूर जाना है,
                  पैदल कैसे चल सकते हो, झंझट भी नाना हैं |
                  पन्द्रह सौ मीलों की दूरी, मानो बहुत कठिन है,
                  शासन कहता हम भेजेंगे, धीरज  रख  पाना है |

                  दस बारह दिन बाद चले जो, पंहुचे वही ठिकाने,
                  केरल, कर्नाटक  से  आये, जो  भी  कहना माने |
                  अपने अपने राज्य पँहुच कर,बस से पंहुचे घर तक,
                  खाना, पीना मुफ्त रहा  है, नहीं  रहे   अनजाने |


Thursday 21 May 2020

कोरोना गीत

      देश वासियो, बहिन भाइयो, मोदी का ऐलान,
          आप मानिये,“अगर जान है तो ही रहे जहान”|
                     भारत ही  क्यों, सब  देशों में घमासान है,
                     कोरोना  के  कारण  सब  ही  परेशान हैं |
                     सुरसा जैसा रूप  बढ़ाता जाता  निश दिन,
                     आज चिकित्सक दल ही सच में,समाधान हैं |
         हाथ जोड़  कर विनती करते, गायें हम  सहगान,
         पाँच फीट की दूरी दूरी रकखें, यह ही बने विधान |
                      केवल छूने मात्र किसी को, हमें सताये,
                      नहीं दवा है कोई  ऐसी,  हमें  बचाये |
                     आज सभी उद्द्योग बन्द हैं,हम हैं भीतर,
                      कब तक घर में रह सकते हैं,कोई बताये?
         घर में रहिये, बात मानिये, हम सब एक समान,
         “कोरोना” तो  हार  जायगा,  होते  क्यों  हैरान |
                      शासन के निर्देश मान्य  हैं, रहें सुरक्षित,
                      सभी एक हैं, भारत में हैं, सभी संगठित |
                      फिर भी हम असहाय,ढूढना हल हमको ही,
                      आतंकी  है, कोरोना  को  करें  पराजित |
       हो सहयोग आपका पूरा, स्वयं आप भगवान,
       पालन करना निर्देशों का, तभी आपका मान |
                  देश वासियो, बहिन भाइयो, मोदी का फरमान,
                  आप मानिये “अगर जान है, तो ही रहे जहान” |

                                       डा० हरिमोहन गुप्त
    

Tuesday 19 May 2020

कोरोना गीत


   हम ही शासक,हम ही जनता, हम सब रहें सुरक्षित,
         कोरोना  तो  हार  जायगा, जीतेंगे  हम  निश्चित |
                   कभी जमाती मरकज वाले, करते काम घिनोना,
                   इधर,उधर से श्रद्धालु भी, संग में लाये कोरोना |
                   दो गज की दूरी  रखना है, नहीं  मानता  कोई,
                   कहते कहते थक जाते हैं, बस “हाथों को धोना” |
        संयम,अनुशासन में  रहना, संग में  हो मर्यादित,
        हमको प्रण अब करना होगा, होगा तभी पराजित |
                  अब भी समय हाथ में है यदि, लाभ उठा लें इसका,
                  भीड़ तन्त्र को रोकें हम सब, तो फिर डर है किसका?
                  जितने बढना  थे ये  रोगी, वहीं  लगाम  लगा  लें,
                  घर में  रह कर  दूरी रक्खें, नाम  मिटायें  उसका |
        हमको तो सचेत रहना है, तो हम  होंगे गर्वित,
       “ जागे तभी सबेरा मानो”, इसको  करना चर्चित |
                  डाक्टर तो  भगवान  बने हैं, सेवा  को  वे  तत्पर,
                  पुलिस हमारा  साथ दे  रही, लाभ उठा  लें  बेहतर |
                  दोनों ही  पूजित हैं  सच में, क्यों  पत्थर  हम मारें?
                  कोरोना  को  जीत   सकेंगे, जग  को   देंगे  उत्तर |
        शसन के निर्देश मान लें, सब दल  हों  आकर्षित,
        घर में रहना, मुख को ढकना, लक्ष्य करेंगे अर्जित |
           
                  



Saturday 16 May 2020

जाने की जल्दी

   लाक डाउन के समय अप्रैल, मई सन 2020
                हमको तो बस घर जाना है, हो कितनी भी दूर,
                पैदल ही  हम चले जाँयगे, हम तो  हैं मजबूर |
                शासन कहता करें व्यवस्था, भेजें  रेल, बसों से,
                लेकिन उनको जल्दी इतनी, माने  ना  मजदूर |
              
                  बीबी बच्चे साथ  आपके, बहुत  दूर जाना है,
                  पैदल कैसे चल सकते हो, झंझट भी नाना हैं |
                  पन्द्रह सौ मीलों की दूरी, मानो बहुत कठिन है,
                  शासन कहता हम भेजेंगे, धीरज  रख  पाना है |

              
                   दस बारह दिन बाद चले जो, पंहुचे वही ठिकाने,
                  केरल, कर्नाटक  से  आये, जो  भी  कहना माने |
                  अपने अपने राज्य पँहुच कर,बस से पंहुचे घर तक,
                  खाना, पीना मुफ्त रहा  है, नहीं  रहे   अनजाने |

    

Friday 15 May 2020

कोरोना


  हम ही शासक,हम ही जनता, हम सब रहें सुरक्षित,
         कोरोना  तो  हार  जायगा, जीतेंगे  हम  निश्चित |
                   कभी जमाती मरकज वाले, करते काम घिनोना,
                   इधर,उधर से श्रद्धालु भी, संग में लाये कोरोना |
                   दो गज की दूरी  रखना है, नहीं  मानता  कोई,
                   कहते कहते थक जाते हैं, बस “हाथों को धोना” |
        संयम,अनुशासन में  रहना, संग में  हो मर्यादित,
        हमको प्रण अब करना होगा, होगा तभी पराजित |
                  अब भी समय हाथ में है यदि, लाभ उठा लें इसका,
                  भीड़ तन्त्र को रोकें हम सब, तो फिर डर है किसका?
                  जितने बढना  थे ये  रोगी, वहीं  लगाम  लगा  लें,
                  घर में  रह कर  दूरी रक्खें, नाम  मिटायें  उसका |
        हमको तो सचेत रहना है, तो हम  होंगे गर्वित,
       “ जागे तभी सबेरा मानो”, इसको  करना चर्चित |
                  डाक्टर तो  भगवान  बने हैं, सेवा  को  वे  तत्पर,
                  पुलिस हमारा  साथ दे  रही, लाभ उठा  लें  बेहतर |
                  दोनों ही  पूजित हैं  सच में, क्यों  पत्थर  हम मारें?
                  कोरोना  को  जीत   सकेंगे, जग  को   देंगे  उत्तर |
        शसन के निर्देश मान लें, सब दल  हों  आकर्षित,
        घर में रहना, मुख को ढकना, लक्ष्य करेंगे अर्जित |