Monday 19 October 2020

 

 

    2

      ओ आफताब,

     अगर तुम्हें घमण्ड है प्रकाश का,

     तो समेटो अपनी रश्मियों  को,

     हम भारत के हैं,

    नया सूरज उगाना जानते हैं।

    तुम्हें तो राहु ग्रसता है,

    लोग जाने न जाने,

    हम तुम्हें पहिचानते हैं।

    तुम केवल दिन में ही उजाला देते हो,

    हम रात दिन दिव्य ज्ञान की-

    प्रकाश रश्मियाँ जन जन तक पहुँचाते हैं।

    तुम्हारा अंहकार मिथ्याभ्रम और खोखला है,

    तुम अपने पास आने ही किसे देते हो ?

    जो साहस करते हैं,

    वे सम्पाती की भाँति पंख जलाते हैं।

    ऐक हम हैं कि लोगों को पास बुलाते हैं,

    उन्हें दिव्य ज्ञान बाँटते हैं,

   तभी तो लोग हमे पूजते हैं।

   अंजनिपुत्र हनुमान ने मिथ्याभिमान तोड़ कर,

   तुम्हें समूचा निगला था।

   अब बचा ही क्या है तुमहारे पास,

   जिसका तुम अभिमान कर सको,

  वैसे भी जहाँ तुम नहीं पहुँच पाते,

  वहाँ कवि पहुँचता है।

 

डा० हरिमोहन गुप्त 

No comments:

Post a Comment