Wednesday 23 January 2019

जीवन के तीन रूप


चटकीले, भड़कीले  रंग  को  ही तुम भरते,
उषा काल में, तुम प्रसन्न होकर क्या करते ?
           आज शिशु का जन्म, कृपा की है ईश्वर ने,
           सतरंगी  बौछार  यहाँ  भर  दी  निर्झर ने,
           रंग बिरंगे, चटकीले रंग  को  ही  भर  कर,
           झंगला और लँगोटी बुन  कर  दी बुनकर ने l
स्नेह और अनुराग तुम्हीं वस्त्रों  में भरते,
बेला गौ धूली की फिर भी क्या तुम करते ?
            शहनाई  बज  रही, हर्ष  भी  लगा ठहरने,
            किया कमल को आलिंगन,गुंजन मधुकर ने,
            प्रणय सूत्र  में  बांधे जो शादी  का  जोड़ा,
            घूँघट सा  बुनकर के, आज दिया बुनकर ने l
जीवन के ही विविध रंगों को क्या तुम भरते,
सारी रात जाग कर बुनकर क्या तुम  करते ?
            आज रुदन स्वर यहाँ निकाला देखो घर ने,
            तोड़  दिए सारे बन्धन  इस तन  जर्जर ने,
            शोक व्याप्त है, इष्ट मित्र, परिवार जनों में,
            श्वेत कफन की चादर बुन कर दी बुनकर ने l


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