तुकबंदी मैं लिखूँ सदा से रही अनिच्छा, चुटकीले ही व्यंग्य पढूँ यह कब है इच्छा | मैं समाज को देने को ही कुछ लिखता हूँ, लेखन हो उद्देश्यपूर्ण मिलती हो शिक्षा |
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