Tuesday, 15 April 2025

 

तुकबंदी मैं  लिखूँ सदा से  रही अनिच्छा
चुटकीले ही व्यंग्य पढूँ यह कब है इच्छा |
मैं समाज को देने को ही कुछ लिखता हूँ
लेखन हो उद्देश्यपूर्ण  मिलती हो शिक्षा |

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