Saturday 19 December 2020

 परोपकार हो बस जीवन में, समझूंगा मैं महा दान है,

धन दौलत तो नहीं रही है,सबका रक्खा सदा मान है,

कवि तो फटे हाल होता है, केवल भाव विचार साथ हैं,

फिर भी मेरे पास बचा है,बस वह केवल स्वाभिमान है |

  जब अधर्म बढ़ता  धरती  पर, कोई  सन्त पुरुष  आता है,

 हमको ज्ञान मार्ग   दिखलाने, भारत  ही  गौरव  पाता  है l

 संत अवतरित  हुये  यहाँ पर, विश्व बन्धु  का  पाठ पढ़ाने, उसका फल हम सबको मिलता, जन जन उनके गुण गाता है l

सत्साहित्य सदा कवि लिखता, चाटुकारिता नहीं धर्म है,

वह उपदेशक है समाज का, सच में उसका यही कर्म है l

परिवर्तन लाना  समाज  में, स्वाभाविक बाधाएँ  आयें,

कार्य कुशलता के ही कारण, सम्मानित है, यही मर्म है l

        

No comments:

Post a Comment