Friday 14 October 2022

 

भारत को माता माना है, प्राण निछावर की ठानी है,

जान हथेली पर रखते हैं, हममें हमीद से मानी हैं |

हम अनेक में एक रहे हैं, जीवन,मरण लगे उत्सव सा,

भले कौम के कोई रहें हम, पर पहिले हिन्दुस्तानी हैं |

 

अडिग हिमालय से हैं हम सब, सागर सी गहराई है,

देश बड़ा  है, हम से  बढ़ कर, ऐसी  शिक्षा पाई है |

भारत में भी कभी स्वार्थवश, जयचंद यहाँ पैदा होते,

प्राणों  की  आहुति  देते हैं,  हमीं  चन्द्रवरदायी हैं |

 

No comments:

Post a Comment