एक प्रश्न जाग्रत था मन में,
    
मानव क्या जिन्दा रहता है,
    
मर कर भी इस जग में ?
    
रुक जाती है सांस,हृदय स्पंदन रुकता,
    
लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
    
गूँज रहे रग रग में |
    
मेरा कुछ ऐसा विचार है,
    
मर जाती है देह, मरे मर जाये तो क्या,
    
जग के सम्मुख,
    
प्राणी के ही कर्म और गुण जिन्दा रहते,
    
जब तक हममें,
    
सत्य,अहिंसा,क्षमा,दया का भाव,
    
धरा पर धर्म कहाये,
    
विश्व बन्धु का पाठ,
    
परस्पर प्रीति बढा कर,
    
सन्तत ऐसी फसल उगाये |
    
हिन्दू,मुसलमान,ईसाई,
    
हरिजन को भी गले लगा कर,
    
कहें परस्पर भाई, भाई |
    
ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
    
तो गांधी सचमुच जिदा हैं, हम सबके ही तन में |
    
इसीलिये तो शायद गांधी,
    
नहीं मरे हैं,नहीं मरेंगे,
    
युग युग तक उनके चरणों में,
     
जाने कितने शीश झुकेंगे |    
  
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