हीरा,
मोती, स्वर्ण भी, सब धन हैं बेकार,
मन में हो सन्तोष धन,मिलता
सुख यह सार l
भीख माँगना
पाप है, इसे बताते लोग,
अतिथि मान कर दीजिये, जुड़े कभी संयोग l
सदाचार गुण प्रमुख है, उसको मानव जान,
बुद्धि, विवेकी, संयमी, स्वयम बने पहिचान l
ईश्वर
ने ही दिया है, बुधि,विवेक युत ज्ञान,
इसीलिये
तो श्रेष्ठ है, मानव की पहिचान |
बुद्धि, विवेकी, संयमी, स्वयम बने पहिचान l
ईश्वर
ने ही दिया है, बुधि,विवेक युत ज्ञान,
इसीलिये
तो श्रेष्ठ है, मानव की पहिचान |v
सदाचार गुण प्रमुख
है, उसको मानव जान,
बुद्धि, विवेकी, संयमी, स्वयम बने पहिचान l
ईश्वर
ने ही दिया है, बुधि,विवेक युत ज्ञान,
इसीलिये
तो श्रेष्ठ है, मानव की पहिचान |
पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों
ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों
ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों
ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों
ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों
ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर
सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l
पाप पुण्य के गणित
को, समझ सका है कौन,
मन चाही है व्यवस्था, शास्त्र हुये हैं मौन l
पंथों
ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
ईश्वर
सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l
पर निन्दा
से जो बचा, रक्खा जिसने मौन,
तन मन जिसका शुद्ध है, उससे
बढ़ कर कौन l
चोरी,असत विचार को, सभी मानते पाप,
सत्य
आचरण श्रेष्ठ है, नहीं रहे संताप l
पर निन्दा से जो बचा, रक्खा जिसने मौन,
तन मन जिसका शुद्ध है, उससे
बढ़ कर कौन l
चोरी,असत विचार को, सभी मानते पाप,
सत्य
आचरण श्रेष्ठ है, नहीं रहे संताप l
v
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़
अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम |
विट, नट, गायक चाह में, जाते राजा द्वार,
समुचित
आमन्त्रण मिले, कवि तब करे विचार |
कवि का यदि स्तर गिरा, घट जाता
सम्मान,
समुचित
आमन्त्रण मिले, कवि तब करे विचार |
कवि का यदि स्तर गिरा, घट जाता
सम्मान,
समुचित
आमन्त्रण मिले, कवि तब करे विचार |
कवि का यदि स्तर गिरा, घट जाता
सम्मान,
समुचित
आमन्त्रण मिले, कवि तब करे विचार |
कवि का यदि स्तर गिरा, घट जाता
सम्मान,