राम कथा अमृत कथा, विष को
करती दूर,
विषय वासना हट सके, यश मिलता भरपूर l
राम
कथा जिसने लिखी,लिया राम का नाम,
राम रंग
में रंग गया, माया
का क्या काम l
जन्म तिथि ३दिसम्बर १९३६
जीवन का पल पल अब बीत रहा,
यह घट भी धीरे से रीत रहा |
जीवन में क्या मैंने पाया है,
सच पूँछो मधुमय संगीत रहा |
बचपन में न्यारा संसार रहा,
सबका ही लाड प्यार,स्नेह रहा |
सबसे आशीष वचन पाया था,
सच में
वह मेरा
नवनीत रहा |
खुली सी किताब रही बचपन की,
बांची पर किसने इस यौवन की |
बदली तो घिरती थी घुमड़ घुमड़,
बिन बरसे
रीत गईं
सावन की |
यौवन ने
जीवन में दर्द सहा,
सुख, दुख में सांझा व्यवहार रहा |
अनगिनते कामों
का बोझ रहा,
संग मगर मेरे मनमीत रहा |
लोगों ने चाहा मैं मिट जाँऊ,
भँवर में किनारा कैसे पाँऊ |
मन्जिल थी
दूर मगर जाना था,
अपना उद्देश्य मुझे पाना था |
उलझ रहे प्रश्नों ने घेर लिया,
अन्तिम लड़ाई, पर जीत रहा |
अब तो
सन्नाटा है
जीवन में,
फिर भी उत्साह भरूं जन जन में,
जीवन में बहुत दूर जाना है,
शेष जो, सफलता को पाना है |
दूर हुईं, मेरी कठनाईयां,
लगता है मेरा मन जीत रहा |
अभिलाषा उससे बस
मिलने की,
कमल दल सौन्दर्य रूप खिलने की |
सोचा है अपना सब खो जाँऊ,
अपने आराध्य को मैं पा जांऊ |
पूरी कब होती हैं इच्छायें,
अनसुलझे प्रश्न सा अतीत रहा |
तन का यह पंछी कब उड़ जाये,
जानेगा कौन? क्या पकड़ पाये ?
भौतिक इच्छायें, सब पूरी हैं,
साध नहीं कोई जो अधूरी है |
चढ़ लीं हैं मैंने सब ऊँचाईयां,
साथी बस, मेरा तो गीत रहा |
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