वृक्ष मौन पर सदा शान्ति के फल उगते हैं,
जो होते वाचाल, कलह उनके फलते हैं |
जो सुन्दर हो, वही श्रेष्ठ हो, आवश्यक क्या ?
लेकिन जो हो श्रेष्ठ, वही सुन्दर लगते हैं |
मिथ्या स्वाभिमान ने हमको, उपभोगवाद में बाँट दिया है,
भोतिक विकास ने मानव को,मानव से सच में अलग किया है |
अब सुख का आधार हमारा, अलगाव वाद में भटक गया है,
मेरा है विश्वास अकारण, अभिशाप सहज में यहाँ लिया है |
माँगे से जो मिलता है, वह भिक्षा है, वरदान नहीं है,
गुरु द्वारा जो भी मिलता वह शिक्षा है, विज्ञान नहीं है |
आस्था औ विश्वास परम आवश्यक है, उसको पाने में,
मन्दिर में जो भी प्रतिमा है, पत्थर है, भगवान नहीं है |
जो भी देश द्रोह में शामिल, दो दो हाथ करें अब,
ढूंढ ढूंढ कर उन्हें मारना, गली ठोर मिल जाएँ जब |
जो भी उनके संरक्षक हैं, उनको हमें मिटाना है,
जब तक आतंकी धरती पर, कैसे चैन हमें सम्भव |
नेह से नाता रहा मनमीत का,
है समर्पण सार ही बस प्रीत का |
गीतकारों ने सदा से यह कहा,
दर्द से रिश्ता पुराना गीत का |
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जिन्दगी का तर्जुवा है मेरा, समय ही हमें सिखाता है,
छोटा आदमी ही सही, मौके पर कभी काम आता है |
नाते, रिश्ते तो निभाने को नहीं, दिखाने को होते हैं,
बड़ा आदमी छोटी सी बात पर भी आँखे दिखाता है |
तुम अपने हो, सदा पड़ोसी धर्म निबाहा,
हिल मिल कर रह सकें इसी को हमने चाहा |
अब भी हम समझाते तुमको, मानो इसको,
वह्कावे में आते हो यह नहीं सुहाता |
धर्म पूँछ कर तुमने निर्दोषों को मारा,
इसका बदला हमको लेना कर्म हमारा |
बार बार तुमको समझाया, नहीं मानते,
आतंकी अड्डों को हमने तभी उखाड़ा |
भारत को माता माना है, प्राण निछावर की ठानी है,
जान हथेली पर रखते हैं, कीमत हमीद की जानी हैं |
हम अनेक में एक रहे हैं, जीवन,मरण लगे उत्सव सा,
भले कौम के कोई रहें हम, पर पहिले हिन्दुस्तानी हैं |
सत्साहित्य सदा कवि लिखता, चाटुकारिता नहीं धर्म है,
वह उपदेशक है समाज का, सच में उसका यही कर्म है |
परिवर्तन लाना समाज में, स्वाभाविक बाधाएँ आयें,
कार्य कुशलता के ही कारण, सम्मानित है, यही मर्म है |
अडिग हिमालय से हैं हम सब, सागर सी गहराई है,
देश बड़ा है, हम से बढ़ कर, ऐसी शिक्षा पाई है |
भारत में भी कभी स्वार्थवश, जयचंद यहाँ पैदा होते,
प्राणों की आहुति देते हैं, हमीं चन्द्रवरदायी हैं |
भक्त की साधना से बड़ी भक्ति है,
सदा आसक्ति से बढ़ कर विरक्ति है|
व्यक्ति से भी बड़ा उसका व्यक्तित्व है,
शक्ति से भी बड़ी बस सहनशक्ति है |