मिथ्या स्वाभिमान
ने हमको,
उपभोगवाद में बाँट दिया है,
भोतिक विकास ने मानव को,मानव
से सच में अलग किया है |
अब सुख का
आधार हमारा, अलगाव
वाद में भटक गया है,
मेरा
है विश्वास अकारण, अभिशाप
सहज में यहाँ
लिया है |
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