अडिग हिमालय से हैं हम सब, सागर सी गहराई है,
देश बड़ा है, हम से बढ़ कर, ऐसी शिक्षा पाई है |
भारत में भी कभी स्वार्थवश, जयचंद यहाँ पैदा होते,
प्राणों की आहुति देते हैं, हमीं चन्द्रवरदायी हैं |
No comments:
Post a Comment