कागज पर ही लुप्त हो गये सारे वादे,
और सामने केवल इनके गलत इरादे l
आदर्शों की कसमें इनकी सभा मन्च तक,
अन्तर मन काले हैं, ऊपर सीधे साधे l
मजहब हमारे भिन्न, मगर धर्म ऐक हो,
धरती पवित्र माँ है, इरादा तो नेक हो l
अनेकता में ऐकता, सिद्धान्त हमारा,
वलिदान के हित ऐक नहीं तुम अनेक हो l
सत्यं शिवं सुन्दरम की गूँजी है वाणी,
सत्यमेव जयते की हमने पढ़ी कहानी l
ऐक झूठ सौ बार कहें क्या सच हो सकता,
सच तो सच है,यही बात जानी पहिचानी l
शूल में कितनी चुभन है, फूल है कितना सुहावन,
द्वेष में कितनी तपन है, प्रेम है कितना सुपावन l
कल्पना कोरी नहीं, चिर सत्य है यह ,
है विरह विधवा सदा से, मिलन है हरदम सुहागन l
तुलसी की चौपाई मन्त्र हैं, जन जन को उपदेश है,
गीता का श्लोक कर्म को, करने का सन्देश है l
सच मानो तो दया, अहिंसा, धर्म सदा मानव का,
सत्य आचरण करो जगत में, ऐसा ही निर्देश है l
तिमिर स्वयं छटता जाता है, पाकर पुण्य प्रकाश,
जटिल प्रश्न तक हल हो जाते, ले कर द्दढ विश्वास l
विषम और गम्भीर परिस्थिति मापदण्ड हैं सच के,
जीवन में द्दढ संकल्पों से होता बुद्धि विकास l
जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना, कोई अन्य विधान नहीं है,
कुमति जहाँ पर रही वहाँ तो, सच मानो सम्मान नहीं है l
आदि वचन “मानस” से छांटे, तुम भी इसको सोचो समझो,
मिल जुल कर रहना हम सीखें, सुमति बिना उत्थान नहीं है l
बुद्धि, विवेकी पुरुषों की बातों को सुनता,
संग कभी पौराणिक आख्यानों को चुनता |
वही सामने आप सभी के मैं रखता हूँ,
साथ कल्पना के ताने बानों को चुनता |
जब कभी भी यदि बिगड़ते आचरण,
स्वार्थ लिप्सा का तने यदि आवरण l
तो आज मानव धर्म समझाएं उसे,
दायित्व है अपना करें हम जागरण l
उ
लक्ष्य करता हर चुनोती को वरण,
हौसला यदि है झुका सकते गगन |
सोच ऊँची ही बनाओ सर्वदा,
ध्वंस है निर्माण का पहिला चरण |
कलुषित असत विचारों को बस धोते जाओ,
बीज सफलता के जीवन में बोते जाओ l
तुम में अहंकार न पनपे बस जीवन में,
सबसे बड़ा मन्त्र दुनियाँ में, यह अपनाओ l
“महाजनो गत: स पन्था”, इसको मूल मन्त्र ही माना,
जिसने उसका किया अनुशरण, उसने सही मार्ग पहिचाना l
यों तो भ्रमित हो रहा मानव, मार्ग भटक जाता है जब तब,
सत्य आचरण के ही बल पर, लोगों ने प्रभु को है जाना l
निज का जो पुरुषार्थ समेटे, सत्संगत में जीता,
भक्ति भाव जिसकी रामायण और कर्म है गीता |
ईर्ष्या,द्वेष,घृणा,चिंता को, छोड़ सका जिसका मन,
जीवन उसका धन्य, समय यदि परोपकार में बीता |
गुनगुनाऊँ गीत जब भी प्रेम का,
साथ में बस तुम मुझे स्वर साज दे देना,
मैं भटक जाऊँ कभी यदि राह में,
जिन्दगी कैसे जिऊँ? अन्दाज दे देना l
ऐक तिनके का सहारा मिल सका तो,
धार लहरें, मैं भँवर तक पार कर लूँगा,
सामने पाना मुझे तुम देखना,
बस किनारे से तनिक आवाज दे देना l