शूल में कितनी चुभन है, फूल है कितना सुहावन,
द्वेष में कितनी तपन है, प्रेम है कितना सुपावन l
कल्पना कोरी नहीं, चिर सत्य है यह ,
है विरह विधवा सदा से, मिलन है हरदम सुहागन l
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