Saturday, 4 October 2025

 

हो नीर क्षीर विवेक  पावन ध्येय है,

युग चेतनाहो तो सफल उद्देश्य है l

सद बीज  से  अंकुरित  वटवक्ष की,

उपलब्धि का परिणाम का ही श्रेय  है l

Friday, 3 October 2025

 

सोच रहा क्या मन में ?

 

पिंजरा तो खाली करना है, रहता किस उलझन में,

                                 प्राणी, सोच रहा क्या मन में |

 

विखर जांयगे फूल  सभी जो, महक रहे उपवन में,

           पंछी कहता उड़ो यहाँ  से, क्यों  रहता  बन्धन में,   

                               प्राणी, सोच रहा क्या मन में |

 

व्याकुल हो यह  ही कहता है, क्या  है मैले तन में,

अगले पल की खबर नहीं  है, चला जायगा क्षण में,

                                 प्राणी, सोच रहा क्या मन में |

 

कौन देख पाया है कल को, व्याप्त वही कण कण में,

आस दूसरे की  क्या  करना, खुद  देखो  दर्पण  में,

                                प्राणी, सोच रहा क्या मन में |

 

जाने  की  बारी  जब आई, लिप्सा क्यों  है  धन में,

अब  भी  समय सोच ले प्राणी, रहना  नहीं चमन में,

                                      प्राणी, सोच रहा क्या मन में |

 

समय  बीत  जायेगा  तब  फिर, पछताये  जीवन  में,

चार दिनों  का  समय मिला था, गँवा दिया अनबन में,

                                        प्राणी, सोच रहा क्या मन में |

 

Thursday, 2 October 2025

 

महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धान्जलि--

क प्रश्न जाग्रत था मन में,

मानव क्या जिन्दा रहता है,

मर कर भी इस जग में ?

रुक जाती है श्वास.

हृदय स्पन्दन रुकता,

लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,

गूँज रहे रग रग में |

मेरा कुछ ऐसा विचार है,

प्राणी के ही कर्म और गुण जिन्दा रहते,

मिट्टी की यह देह मरे,मरे जाए तो क्या?

जग के सम्मुख वाणी के स्वर,

मानवता जिन्दा रहती है |

जब तक हममें,

सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,

धरा पर धर्म कहाए,

विश्व बन्धु का पाठ, परस्पर प्रीत बढ़ा कर,

सुख समृद्धि, शान्ति हित जीवन,

सन्तत ऐसी फसल उगाये |

हिन्दू,मुसलमान, ईसाई,

हरिजन को भी गले लगा कर,

कहें परस्पर भाई भाई,

ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,

तो गान्धी जिन्दा हैं मानो,

हम सबके ही तन में |

इसीलिए तो शायद गांधी नहीं मरे हैं,

नहीं मरेंगे |

युग युग तक उनके चरणों में,

जाने कितने शीश झुकेंगे |

       डा0 हरिमोहन गुप्त

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

            ***************

 

 

 

 

 

Wednesday, 1 October 2025

 

भारत  तेरे  टुकड़े  होंगे, कैसे  आया  नारा?

हिन्दू मुस्लिम एक रहे हैं,यह सिद्धान्त हमारा |

किसके बहकाबे में आ कर ऐसी  सोच बनाई,

क्या अपनों से दूर रह सको, बदलो अपनी धारा \

Tuesday, 30 September 2025

 

सत्साहित्य  सदा कवि लिखता,चाटुकारिता  नहीं धर्म है,

वह उपदेशक है  समाज का. सच में उसका यही कर्म है l

परिवर्तन लाना  समाज में, स्वाभाविक  वाधाएं  आयें,

कार्य कुशलता के  ही कारण, सम्मानित है यही मर्म है l

Monday, 29 September 2025

 

शूल में कितनी चुभन है, फूल है कितना सुहावन,

द्वेष में कितनी तपन है, प्रेम है कितना सुपावन l

कल्पना  कोरी  नहीं, चिर  सत्य  है  यह ,

है विरह विधवा सदा से,मिलन है हरदम सुहागन l

Sunday, 28 September 2025

 

काम मैं परमार्थ के हरदम करूँ,

देश द्रोही  जो  रहे उनसे लडूं l

चाह बस औढूं तिरंगा कफन का,

जब भी मरूं, देश हित में ही मरूं l

Friday, 26 September 2025

 

कलुषित असत विचारों को बस धोते जाओ,

बीज सफलता  के  जीवन में  बोते जाओ l

तुममें अंहकार     पनपे बस जीवन  में,

है  मेरा  आशीष,  अग्रसर  होते  जाओ l

Thursday, 25 September 2025

 

वर्ग भेद, विद्वेष हटायें, जनजीवन मन भावन,

आओ पाहिले मिल के मारें अंहकार का रावण l

रोड़े तो अक्सर आते हैं, सदा सत्य के पथ पर,

सदाचरण  से  जीत हमारी, पर्व मनाएं पावन l

Wednesday, 24 September 2025

जहाँ  सुमति तहँ  सम्पति नाना, कोई अन्य विधान नहीं है,

कुमति जहाँ पर रही  वहाँ तो, सच मानो  सम्मान नहीं है l

आदि वचन मानससे छांटे, तुम भी इसको सोचो समझो,

                                        मिल जुल कर रहना हम सीखें, सुमति बिना उत्थान नहीं है l