भूखा न सोये कोई तो उसका नसीब है,
सेवा में रहे तत्पर खुदा के करीब है l
कितना भी हो अमीर यदि दौलत की भूख है,
परहित नहीं है सोच, तो सच में गरीब है l
जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना, कोई अन्य विधान नहीं है,
कुमति जहाँ पर रही वहाँ तो, सच मानो सम्मान नहीं है l
आदि वचन “मानस” से छांटे, तुम भी इसको सोचो समझो,
मिल जुल कर रहना हम सीखें, सुमति बिना उत्थान नहीं है l
सभी चाहते सदा करें सब, उनकी ही अनुशंसा,
उनको चाटुकार ही घेरें, रहती ऐसी मंशा l
हर बुराई पर परदा डालें, गाएं सब गुणगाथा,
सदा भली लगती है सबको, अपनी आत्म प्रशंशा l
दुराचरण से सच में मानव, सदा घिनोना हो जाता है,
सन्तोषी यदि,घास फूंस भी सुखद विछोना हो जाता है l
विज्ञ जनों की यदि हम माने,हम अपने आचरण सुधारें,
सत्संगति ही पारस मणि है, लोहा कन्चन हो जाता है l
मजहब हमारे भिन्न, मगर धर्म ऐक हो,
धरती पवित्र माँ है, इरादा तो नेक हो l
अनेकता में ऐकता, सिद्धान्त हमारा,
वलिदान के हित ऐक नहीं तुम अनेक हो l
उतर गया आज चाँद पर, भारत निर्मित यान,
भारत का दृढ निश्चय था यह, दुनियाँ में है मान |
अपना तो सिद्धान्त यही है, सर्वे भवन्तु सुखिना,
विश्व गुरू हम फिर से होंगे, यह होगी पहिचान |
लक्ष्य करता हर चुनोती को वरण,
हौसला यदि है झुका सकते गगन |
सोच ऊँची ही बनाओ सर्वदा,
ध्वंस है निर्माण का पहिला चरण |
तुलसी की चौपाई मन्त्र हैं, जन जन को उपदेश है,
गीता का श्लोक कर्म को, करने का सन्देश है l
सच मानो तो दया, अहिंसा, धर्म सदा मानव का,
सत्य आचरण करो जगत में, ऐसा ही निर्देश है l
पढ़कर गुनकर गुण दोषों की करें समीक्षा,
समय पड़े पर आवश्यक उत्तीर्ण परीक्षा l
लेकिन इतना धीरज रक्खें शान्ति भाव से,
फल पाने को करना पड़ती सदा प्रतीक्षा l
तुलसी ने जो कहा किसी ने कहा नहीं,
तुलसी ने जो सहा किसी ने सहा नहीं |
तुलसी के उपदेश आपने अगर सुने,
भव बन्धन कर पार धरा पर रहा नहीं |
न मैं हिन्दू हूँ, न मुसलमान हूँ,
भाई -चारे में पला ईमान हूँ |
देश हित में प्राण जो अर्पित करे,
पूजता उसको, मैं हिन्दुस्तान हूँ |
सदा सत्य ही कहो, यही तो रहा धर्म है,
अग्रज का अनुशरण बताया गया कर्म है l
पर निन्दा करने से पाहिले तनिक विचारो,
शब्दों को तोलो फिर बोलो यही मर्म है l
काम मैं परमार्थ के हरदम करूँ,
देश द्रोही जो रहे उनसे लडूं l
चाह बस औढूं तिरंगा कफन का,
जब भी मरूं, देश हित में ही मरूं l
विघटन कारी जो समाज है, उसका चढ़ता रंग,
चापलूस यदि घेरें तुमको, पड़े रंग में भंग l
बुद्धि और श्रद्धा से प्राणी निर्मल होता,
आगे बढना लक्ष्य अगर है, वे करते सत्संग l
जीवन में संघर्षों का क्रम चलता आया है,
और रात की गोद प्रात पलता आया है l
चिर अशांति या पीड़ित मन आलोकित करने,
सम्बन्धों का स्नेह सदा जलता आया है l
जब भी ह्रदय द्रवित होता तो, आँखों में पानी भर आता l
आँखों का पानी मर जाता, आँखों से जो भी गिर जाता,
बुन्देलखण्ड का पानी है, जो हरदम पानीदार कहाता l
तिमिर स्वयं छटता जाता है, पाकर पुण्य प्रकाश,
जटिल प्रश्न तक हल हो जाते, ले कर द्दढ विश्वास l
विषम और गम्भीर परिस्थिति मापदण्ड हैं सच के,
जीवन में द्दढ संकल्पों से होता बुद्धि विकास l
कुछ करना है जिसे धरा पर, उसे कहाँ विश्राम,
सदा कार्यरत रहने से ही, मिल सकते हैं राम l
भौतिक युग में आज व्यस्त जीवन है सबका,
इतना समय कहाँ किसको है, लेले जो हरिनाम l
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शिष्य होता अग्रसर, गुरु ज्ञान पा कर,
बूंद छोटी है, मगर भर जाय गागर l
खोजते हैं हम, तभी तो रत्न मिलते,
यों छिपी प्रतिभा, यहाँ होती उजागर l
तोता खाता मिर्च, बोलता मीठी वाणी,
खाता चीनी, मगर बोलता कडुआ प्राणी l
झूठ, फरेब, प्रपंच, सदा रहता आकांक्षी,
स्वांग रचे वह, जगत कहे उसको कल्याणी l
भक्त की साधना से बड़ी भक्ति है,
सदा आसक्ति से बढ़ कर विरक्ति है,
व्यक्ति से भी बड़ा उसका व्यक्तित्व है,
शक्ति से भी बड़ी बस सहनशक्ति है l
अस्मत के खरीदार सब उनके मकान में,
अब आबरू तक बिक रही उनकी दुकान में |
सबसे बड़ा सन्ताप गरीबी को भोगना,
यह बात क्यों लिक्खी नहीं गीता,कुरआन में |
वादा किया, न कर सका पूरा, अफसोस है मुझको.
आदमी मजबूर है, किस्मत की लिखी लकीरों से l
इन्सानियत में ढूंढिएगा , मैं वहीँ मिल जाऊँगा क्यों व्यर्थ मुझको खोजते हो आप अपने मजहबों में?