भाव
हैं उदिग्न मन की ही तपन,
साधना
स्वर ही रहा संगीत का धन.
लय अगर बस
छन्द का श्रृंगार कर दे,
गीत
क्या है
सृष्टि का नूतन सृजन.
महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धान्जलि--
एक प्रश्न जाग्रत था
मन में,
मानव क्या जिन्दा रहता है,
मर कर भी इस जग में ?
रुक जाती है श्वास.
हृदय स्पन्दन रुकता,
लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
गूँज रहे रग रग में |
मेरा कुछ ऐसा विचार है,
प्राणी के ही कर्म और गुण जिन्दा रहते,
मिट्टी की यह देह मरे,मरे जाए तो क्या?
जग के सम्मुख वाणी के स्वर,
मानवता जिन्दा रहती है |
जब तक हममें,
सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
धरा पर धर्म कहाए,
विश्व बन्धु का पाठ, परस्पर प्रीत बढ़ा कर,
सुख समृद्धि, शान्ति हित जीवन,
सन्तत ऐसी फसल उगाये |
हिन्दू,मुसलमान, ईसाई,
हरिजन को भी गले लगा कर,
कहें परस्पर भाई भाई,
ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
तो गान्धी जिन्दा हैं मानो,
हम सबके ही तन में |
इसीलिए तो शायद गांधी नहीं मरे हैं,
नहीं मरेंगे |
युग युग तक उनके चरणों में,
जाने कितने शीश झुकेंगे |
डा0 हरिमोहन गुप्त
माँ,बेटी या बहिन संग, मन में बना विचार,
सम्बन्धों
के बीच में, खड़ी ऐक
दीवार.
पाला उसने आप को, माँ का ह्रदय विशाल,
जब विपत्ति आई कोई, सदा बनी वह ढाल.
नारी उत्पीड़न बढ़ा, करिये तनिक विचार,
रोग कठिन अब हो रहा, ढूढ़े कुछ उपचार.
नियम, कायदे बाद में, स्वयं संवारें आप,
बलात्कार अपराध है, सोचो यह है पाप.
बलात्कार या अपहरण, होता जाता आम,
मर्यादा सब टूटती, क्या सुबह क्या शाम.
सदियों से झेला इसे, समझो पापाचार,
अबलाओं पर बंद हो, अब तो अत्याचार.
काम
वासना प्रबल है,कठिन बचाना लाज,
कुंठित
मर्यादा हुई, ऐसे रीत
रिवाज.
बलात्कार होता रहा, चलती बस में आज,
देहली को दहला दिया, नहीं सुरक्षित लाज. (2दिसम्बर2012) ( निर्भया )
चली
गई है “दामनी”, छोड़ दरिंदी देश,
बलात्कार से वह लड़ी, दे कर यह संदेश.
लाज बचाना कठिन है, किया यही उल्लेख,
भारत में
रहना अगर, केवल घर को देख.
चली गई है “दामनी”, छोड़ा ऐक
सवाल,
बलात्कारियों का यहाँ, चहूँ दिश फैला जाल.
जगा दिया है देश को, “दामिन” ने इस बार,
बलात्कार शायद
रुके, शासन करे प्रहार.
माँ,बेटी
या बहिन संग, मन में बना विचार,
सम्बन्धों
के बीच में, खड़ी ऐक
दीवार.
पाला उसने आप को, माँ का ह्रदय विशाल,
जब विपत्ति आई कोई, सदा बनी वह ढाल.
नारी उत्पीड़न बढ़ा, करिये तनिक विचार,
रोग कठिन अब हो रहा, ढूढ़े कुछ उपचार.
नियम, कायदे बाद में, स्वयं संवारें आप,
बलात्कार अपराध है, सोचो यह है पाप.
बलात्कार या अपहरण, होता जाता आम,
मर्यादा सब टूटती, क्या सुबह क्या शाम.
सदियों से झेला इसे, समझो पापाचार,
अबलाओं पर बंद हो, अब तो अत्याचार.
काम
वासना प्रबल है,कठिन बचाना लाज,
कुंठित
मर्यादा हुई, ऐसे रीत
रिवाज.
बलात्कार होता रहा, चलती बस में आज,
देहली को दहला दिया, नहीं सुरक्षित लाज. (2दिसम्बर2012) ( निर्भया )
चली
गई है “दामनी”, छोड़ दरिंदी देश,
बलात्कार से वह लड़ी, दे कर यह संदेश.
लाज बचाना कठिन है, किया यही उल्लेख,
भारत में
रहना अगर, केवल घर को देख.
चली गई है “दामनी”, छोड़ा ऐक
सवाल,
बलात्कारियों का यहाँ, चहूँ दिश फैला जाल.
जगा दिया है देश को, “दामिन” ने इस बार,
बलात्कार शायद
रुके, शासन करे प्रहार.
“नारी”
नारी अबला मत कहो,सबला है वह आज,
छूती है
आकाश को, सर पर रक्खे ताज.
नैतिक शिक्षा दीजिये, नारी को सम्मान,
नशा
रोकिये सब तरह,तब होगा कल्याण.
पहिले बदलें आचरण, भाषण का क्या काम,
नारी की
पूजा करें, तो
पाओ आराम.
नारी को पूजें
सभी, उसको दें सम्मान,
आ कर
बसते देवता, सर्व सिद्धि अभियान.
नारी अनुपम रत्न है, नर संशय का पात्र,
दोषों का
भंडार है, निश्चय नश्वर मात्र.
इस वर्ष
गणतन्त्र दिवस को कुछ ऐसे मनाएं,
आजादी का
अर्थ सभी
को हम समझायें l
संकल्प
दिवस है आज, प्रण
तो लेना होगा,
आतंकवाद से आज सभी बाधाएं मिटायें
अभिनन्दन
गणतन्त्र दिवस का करते हम शत वार,
शान्ति
ऐकता के
माध्यम से बने ऐक
परिवार l
सदा शान्ति के रहे समर्थक, सत्य अहिंसा अनुयायी,
भारत वासी
विश्वबन्धु में बँधने
को तैयार l
दुख होता
जब सामने, भजते सब श्री राम,
यदि सुख में भजते रहें, दुखका फिर क्या काम l
राम नाम
महिमा सुनी, यह है सच्ची बात,
जो भजता
श्री राम को, सुख पाता दिन रात l
मन पवित्र यदि आपका,तो मिल सकते राम,
भाव समर्पण का रखें, सफल सिद्ध परिणाम l
शीलव्रती मन से
रहें,सदा करें सद्काम,
सत्य मार्ग पर जो चलें, रक्षा करते राम l
जिनके हृदय विराजते, प्रभुवर सीताराम,
कष्ट नहीं पाते कभी ,जो भजते श्री राम l
राम,
राम, जय राम जी, राम राम भज राम,
राम राम
भजते रहो, यदि चाहो
आराम l
मन में हों श्री राम जी, काम करें सब राम,
हर क्षण हो बस राममय, बिना किये विश्राम l
सारा जग है राममय, सभी जगह हैं राम,
मन
निर्मल यदि आपका, तो बसते अभिराम l
चलते फिरते भी भजो, मन ही मन श्री राम,
बिगड़ेगा कुछ
भी नहीं, बन जाते हैं काम l
चित्र
राम का मन बसे, होगा हर्ष अपार,
सिया राम
की छवि रहे, होगा बेड़ा पार l
कमल नयन श्री राम की, छवि सुन्दर कमनीय,
पीताम्बर
धारण करें, संग में
उनके सीय l
सिया राम मय जगत है,जन जन का आधार,
मिथ्या सब
संसार है, प्राणी यह
है सार l
सखा
हमारे राम हैं, वही पिता हैं मात,
सबको शुभ आशीष की, देते हैं सोगात l
सीता पति श्री राम हैं, लक्ष्मण उनके साथ,
विघ्न स्वयम हरते वही, छाया करता हाथ l
विषयी
घोड़े दोड़ते, उनको लगे
लगाम,
इन्द्रिय निग्रह जो करे, उसको मिलते राम l
लू
में आवे पाउनो,
होवे बो बेहाल,
आमंन को
बन है पनो, हो जे है खुशहाल l
आबे कोनउ पावनो, बिडई बने बा रोज,
बेसन को मीड़ा बने, ऐसो नोनो
भोज l
आंवरे को आँवरिया,
हिंगोरा को स्वाद,
बरी, मिथोरी बन गई, जीवन भर रय याद l
सकर कंद खों भूज कें, लस्सी,हलुआ खाय,
सत्यव्रती वे
ही बनें, जो भूखें सो जाँय l
सबई तीज त्यौहार पे, बने कढ़ी
संग भात,
छप्पन व्यंजन सो लगे, गोरस संग में खात l
बुन्देली व्यंजन बनें, मने तीज त्यौहार,
बोलें
बुन्देली सबई, बुन्देली व्योहार l
ज्वार,
बाजरा मलीदा, घी, गुड के संग खाय,
खा केँ सुस्ता लो जरा, जाड़ो खुद भग जाय l
बथुआ, मेथी, नोरपा, बेगन भर्ता
खाय,
केंथा की चटनी मिले, स्वाद दो गुनों पाय
मठा,महेरी खाय जो, पाँच कोस लों जाय,
थोरो
थोरो गुड़ मिले, नहीं थकाबट पाय l
सतुआ घोरे थार में, गुड़ के संगे
खाय,
भरी दुफरिया में चले, पाउन नहीं थकाय l