माँ,बेटी या बहिन संग, मन में बना विचार,
सम्बन्धों
के बीच में, खड़ी ऐक
दीवार.
पाला उसने आप को, माँ का ह्रदय विशाल,
जब विपत्ति आई कोई, सदा बनी वह ढाल.
नारी उत्पीड़न बढ़ा, करिये तनिक विचार,
रोग कठिन अब हो रहा, ढूढ़े कुछ उपचार.
नियम, कायदे बाद में, स्वयं संवारें आप,
बलात्कार अपराध है, सोचो यह है पाप.
बलात्कार या अपहरण, होता जाता आम,
मर्यादा सब टूटती, क्या सुबह क्या शाम.
सदियों से झेला इसे, समझो पापाचार,
अबलाओं पर बंद हो, अब तो अत्याचार.
काम
वासना प्रबल है,कठिन बचाना लाज,
कुंठित
मर्यादा हुई, ऐसे रीत
रिवाज.
बलात्कार होता रहा, चलती बस में आज,
देहली को दहला दिया, नहीं सुरक्षित लाज. (2दिसम्बर2012) ( निर्भया )
चली
गई है “दामनी”, छोड़ दरिंदी देश,
बलात्कार से वह लड़ी, दे कर यह संदेश.
लाज बचाना कठिन है, किया यही उल्लेख,
भारत में
रहना अगर, केवल घर को देख.
चली गई है “दामनी”, छोड़ा ऐक
सवाल,
बलात्कारियों का यहाँ, चहूँ दिश फैला जाल.
जगा दिया है देश को, “दामिन” ने इस बार,
बलात्कार शायद
रुके, शासन करे प्रहार.
माँ,बेटी
या बहिन संग, मन में बना विचार,
सम्बन्धों
के बीच में, खड़ी ऐक
दीवार.
पाला उसने आप को, माँ का ह्रदय विशाल,
जब विपत्ति आई कोई, सदा बनी वह ढाल.
नारी उत्पीड़न बढ़ा, करिये तनिक विचार,
रोग कठिन अब हो रहा, ढूढ़े कुछ उपचार.
नियम, कायदे बाद में, स्वयं संवारें आप,
बलात्कार अपराध है, सोचो यह है पाप.
बलात्कार या अपहरण, होता जाता आम,
मर्यादा सब टूटती, क्या सुबह क्या शाम.
सदियों से झेला इसे, समझो पापाचार,
अबलाओं पर बंद हो, अब तो अत्याचार.
काम
वासना प्रबल है,कठिन बचाना लाज,
कुंठित
मर्यादा हुई, ऐसे रीत
रिवाज.
बलात्कार होता रहा, चलती बस में आज,
देहली को दहला दिया, नहीं सुरक्षित लाज. (2दिसम्बर2012) ( निर्भया )
चली
गई है “दामनी”, छोड़ दरिंदी देश,
बलात्कार से वह लड़ी, दे कर यह संदेश.
लाज बचाना कठिन है, किया यही उल्लेख,
भारत में
रहना अगर, केवल घर को देख.
चली गई है “दामनी”, छोड़ा ऐक
सवाल,
बलात्कारियों का यहाँ, चहूँ दिश फैला जाल.
जगा दिया है देश को, “दामिन” ने इस बार,
बलात्कार शायद
रुके, शासन करे प्रहार.
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