Thursday 31 May 2018

कल किसने देखा

गद्द लेखन की तुलना में कहानी का प्रभाव अधिक होता है l कहानी पढने में और सुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है l यदि कहानी पद्द में हो तो और अधिक प्रभावी हो जाती है l
“सब सुलझ जाती समस्या , बात नानी की पुरानी
बस प्रतीकों में भले हो , एक राजा एक रानी
तथ्य के संग हो कथानक , उद्देश्य के संग कल्पना
साथ लेखक की कुशलता , तो यही बनती कहानी”
छै कहानियों को पद्द में लिखने का प्रयास है , हर कहानी कुछ न कुछ सन्देश देती है l


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जब हम रंग मंच पर जाते.


पहली बार पाँव  कँपते  हैं, जब  हम रंग मन्च  पर जाते,
किन्तु सतत अभ्यासी बन जो, कला मन्च का धर्म निभाते l
द्दढता,  साहस,  सदाचरण से, तन मन उत्साहित हो जाता,
जीवन  में  निर्भीक  रहे  जो, सदा सफलता  वे  नर पाते l

Wednesday 30 May 2018

नारी चेतना


युग कोई भी रहा हो नारी की स्थिति बराबर की कह कर उसका शोषण ही हुआ है l पुरुषों को अधिकार है कि वह बहु विवाह कर सकता है लेकिन नारी नहीं , यदि उसके साथ बलात्कार हुआ हो तो दोष नारी का ही माना गया और उसे दण्डित भी किया गया l
इस ओर समाज का ध्यान आकर्षित करने के लिए पौराणिक पात्र ‘अहल्या’ को लेकर ‘नारी चेतना’ में विचार किया गया हैl नारी की अंतर्व्यथा पर चिन्तन, मनन और समाधान ढूँढने का प्रयास किया गया है l



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Tuesday 29 May 2018

पाप पुन्य के गणित को,


पाप पुण्य के गणित को, समझ सका है कौन,
मन चाही  है  व्यवस्था, शास्त्र हुये  हैं मौन l 
                 
                      पंथों  ने बाँटा हमें, द्वैत और अद्वैत,
                      ईश्वर सत्ता ऐक है, प्राणी अब तू चेत l

Monday 28 May 2018

कटा अंगूठा


   महाभारत के एक पात्र एकलव्य की गुरुभक्ति पर अधिकतर लेखकों ने लिखा है पर अँगूठा कट जाने के बाद उसकी मनः दशा क्या रही होगी इस पर लिखा यह काव्य अपना अलग स्थान रखता है l
     आज ‘अर्जुन’ , ‘द्रोणाचार्य’ सम्मान तो मिलते हैं पर एकलव्य जैसे पात्र को भी सम्मानित किया जाना चाहिए इस ओर शासन का ध्यान आकृष्ट किया है l
              “अग्रिम पंक्ति न मिल पाए बस वह तो रहा  उपेक्षित ,
              शिष्य न माना तदपि दक्षिणा, फिर क्यों रही अपेक्षित l
                             एकलव्य के प्रश्न शान्ति सुख, छीने हैं यह अनुभव,
                             अनउत्तरित यदि बने रहे तो,प्रगति नहीं है सम्भव l

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Sunday 27 May 2018

साध्वी सीता


न्याय की आँखें नहीं , अपितु कान होते हैं वह दोनों पक्षों को सुनकर अपने विवेक से निर्णय सुनाता है , पर यदि न्यायाधीश के आँख और कान दोनों हों और घटना भी उसी के साथ की हो फिर भी वह दूसरे पक्ष को बिना सुने राज्य से निष्काषित कर दे तो न्याय को क्या कहेंगे ?
  पौराणिक, धार्मिक, आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर आधारित नारी प्रधान कथानक में नारी की स्थिति ,चित्रण, पीड़ा और उसके समाधान ढूँढने का प्रयास है l    



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कुणाल


विमाता के प्रणय प्रेम के अस्वीकार करने का दण्ड सम्राट अशोक के पुत्र कुणाल को गरम सलाखों से अपने नेत्रों को खो कर भोगना पड़ा l ऐतहासिक प्रष्ठभूमि पर आधारित सत्य घटना है, खण्ड काव्य “कुणाल,ऐक अप्रतिम त्याग” l                   
               “नेत्र दिये पर नहीं डिगा,शाशक अशोक का धन्य लाल था,
               प्रणय प्रेम वात्सल्य रूप में, बदल दिया ऐसा कुणाल था”


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Saturday 26 May 2018

रविदास

पहले भारतवर्ष में वर्ण भेद की समस्या गुरुतर थी l शूद्र अंतिम स्वांस तक अस्पर्श्य का नारकीय जीवन जीते थे , पर 14 वीं शातब्दी के मध्य में शूद्र रविदास अग्रगण्य संतों में गिने गए l
 एक महान संत एवं कवि की गौरव गाथा एवं सन्देश , जिसने चर्मकार के घर जन्म लेकर समता का सन्देश दिया l गृहस्थ धर्म में रहकर भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया , समाज सुधार आन्दोलन को गति दी और कर्म को प्रधान माना l
       दलित वर्ग को ऊँचा उठाने और बराबर पर लाने के लिए राजनैतिक लाभ और हतकन्डो को छोड़ कर वास्तव में जिसे आवश्कता है उसकी सहायता करके उन्हें ऊँचा उठाने का प्रयास करना चाहिए तभी यह आन्दोलन सफल हो सकेगा l


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Friday 25 May 2018

भाग्यहीन

     महाभारत में कर्ण भी एक पात्र है जिसे राजपुत्र होने पर भी शूद्र का जीवन व्यतीत करना पड़ा था क्योंकि वह कुँवारी माँ कुन्ती का पुत्र था और उसे नदी में प्रवाहित कर दिया गया था l जिसे शूद्र कुल की नारी राधा ने पुत्र मान कर पाला l
     शिक्षा गृहण के समय परुशराम से , शस्त्र प्रदर्शन के अवसर पर द्रोणाचार्य से और विवाह के लिए स्वयम्वर में राजा द्रुपद के द्वारा उसे शूद्र होने के कारण अपमानित होना पड़ा l
 
“किस घर जन्मा, किसने पाला  सूतपुत्र ही रहा विवादित,
अपमानित ही सदा रहा वह, दुर्योधन के लिये समर्पित
माँ, भाई, ऐश्वर्य, राजसुख, त्याग सभी वह दूर रहा था
दान, वीरता, शोर्य, पराक्रम, मित्र प्रेम से सभी प्रभावित” ।।


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ह्रदय परिवर्तन


       बोद्ध काल में अंगुलिमाल एक डाकू था, लेकिन महात्मा बुद्ध ने अपने वार्तालाप के प्रभाव से उसका ह्रदय परिवर्तन किया, और दस्यु प्रकृति से छुटकारा दिलाया l उसी भाव को सामने रख कर आजकल दस्यु समस्या से छुटकारा न मिलने के कारण और उसके समाधान प्रस्तुत करने की दिशा में प्रयास है l
               
                हम पापी से नहीं, पाप से घ्रणा करें यह ही स्वीकारें,
                अपराधी को भय से नहीं, प्रेम से बदलें तथा संवारें
                       शासन में जो भी बैठें हैं, उनसे मेरा नम्र निवेदन,
                       आत्म समर्पण के पहिले हम, दस्यु ह्रदय के ही बदलें मन


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मैने तो बस गीत लिखे हैं,


मैनें तो बस गीत लिखे हैं, इनको तुम अपना स्वर दे दो,
मैं तो आकार  दिया है, जीवित  रहने  का  वर  दे  दो l
 भाषा पर प्रतिबन्ध नहीं हो,
छंदों  से अनुबन्ध नहीं  हो,
स्वर,लय,गति सब साध सकूं मैं,यह आशिष झोली भर दे दो l
उड़ पाऊं उन्मुक्त गगन में,
ऐसे आकांक्षा  है  मन  में,
एकलव्य जन जन बन जाये,
 हर योद्धा अर्जुन बन जाये,
लक्ष्य भेद  मैं  भी  कर  पाऊं, ऐसा  कोई  तुम  शर दे दो l
करनी का फल सब भरते हैं,
मरने  को तो सब मरते  हैं,
मर  कर भी  जिन्दा रह  पाऊं, जीने  का ऐसा  वर दे  दो l
हो सुखान्त तुम खो कहानी,
मुखरित हो जाये यह वाणी ,
सुख समृद्ध  ही रहे प्रवाहित, सरिता उद्गम  निर्झर दे  दो l  
सत्य अहिंसा के अनुयायी,
जीवन भर यह शिक्षा पाई,
सीमा  पर  कोई  ललकारे, उसके  वध हित  खन्जर दे  दो l
हिन्दू,मुस्लिम,सिख, इसाई,
 आपस  में सब भाई भाई,
ऐक  क्षत्र  में  रह  पायें सब, ऐसा  रहने  को  घर  दे  दो l

Thursday 24 May 2018

संकल्प

एक सच्ची घटना को आधार बनाकर लिखा गया यह नाटक युवा वर्ग को दिशा देता है l व्यक्ति में इच्छा शक्ति और मन में संकल्प प्रगति में सीढियाँ चढ़ने के लिए पर्याप्त है l
अभिलाषा बलवती अगर है , संग में इच्छा शक्ति परिश्रम,
लक्ष्य सामने , सतत ध्यान में हट जाते हैं सब बाधा क्रम l
जो धुन के पक्के होते हैं, वे विश्राम कहाँ करते हैं ,
एक लक्ष्य जो है निर्धारित, सोपानी क्रम से चढ़ते हैं l


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लक्ष्मण विसर्जन


दुर्वासा ऋषि का क्रोध,और राजाराम का आदेश, इसमें लक्ष्मण ने राजाराम के आदेश का उल्लंघन कर गुप्त वार्ता में वाधा डाली, उसी के परिणाम स्वरूप उनको अपने शरीर का त्याग करना पड़ा l आध्यत्म रामायण के प्रसंग पर आधारित यह लघु खण्ड काव्य आपके समक्ष है l

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कद बडा है आपका,


कद बड़ा है आपका बस, शाम की परछाई सा,
असलियत का तो पता, सूरज सुबह बतलायगा l
 सत्य होंगे सब उजागर, दोपहर कल  धूप में,
ध्यान से जब देखना,तो खुद समझ आ जायगा l
                ओढ़ करके यह लबादा, ढोंग का कब तक चलेगा,
                तथ्य जब होंगे उजागर, तब  पता  चल जायगा l
दाग  चेहरे  पर  लगा है, क्या पता है आपको,
आइना बस देखियेगा, खुद व खुद दिख जायगा l
                आप गदगद हैं कि शायद, आपका कद बढ़ रहा,
                दूसरे नापें  ऊँचाई,  तब  कोई   कह  पायगा l
मैं  बड़ा  हूँ, तू  नहीं है, यह लड़ाई आज भी,
सब बराबर हैं जमी पर, कौन यह समझायगा l
                पैर छू लूँगा बड़े के, स्वयम छोटा मान  कर,
                कौन है सबसे बड़ा, यह तो पता चल जायगा l
चार कदमों बाद ही, कहने लगे हम थक गये,
जिन्दगी लम्बा सफर, कैसे  कहो कट पायगा l
                 आप झुक कर तो मिलें, बस आपसे जो भी मिले,
                 आपका कद  तो  बड़ा बस, आप  ही हो जायगा l   

Wednesday 23 May 2018

हेमू आख्यान


     हेमू अथवा हेमराज मध्य युग के इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं , एन. के. स्मिथ. , एल. पी. शर्मा की शोध के अनुसार हेमू वैश्य वर्ग से थे और आदिलशाह की मृत्यु के पश्चात वे दिल्ली की गद्दी पर बैठे l हेमू को न्याय प्रिय होने के कारण विक्रमादित्य की उपाधि से विभूषित किया गया l वैश्य लोगों ने समय – समय पर शासन संभाला , हेमू दिल्ली में अंतिम हिन्दू सम्राट रहे l यह पुस्तक उन्हीं की वीरगाथा है l

हेमू की गौरव गाथा को जन जन तक पहुँचायें
वह गहोई कुल में जन्मे थे , श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ ll

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 हेमू आख्यान

जीवन के तीन रूप



चटकीले, भड़कीले  रंग  को  ही तुम भरते,
उषा काल में, तुम प्रसन्न होकर क्या करते ?
           आज शिशु का जन्म, कृपा की है ईश्वर ने,
           सतरंगी  बौछार  यहाँ  भर  दी  निर्झर ने,
           रंग बिरंगे, चटकीले रंग  को  ही  भर  कर,
           झंगला और लँगोटी बुन  कर  दी बुनकर ने l
स्नेह और अनुराग तुम्हीं वस्त्रों  में भरते,
बेला गौ धूली की फिर भी क्या तुम करते ?
            शहनाई  बज  रही, हर्ष  भी  लगा ठहरने,
            किया कमल को आलिंगन,गुंजन मधुकर ने,
            प्रणय सूत्र  में  बांधे जो शादी  का  जोड़ा,
            घूँघट सा  बुनकर के, आज दिया बुनकर ने l
जीवन के ही विविध रंगों को क्या तुम भरते,
सारी रात जाग कर बुनकर क्या तुम  करते ?
            आज रुदन स्वर यहाँ निकाला देखो घर ने,
            तोड़  दिए सारे बन्धन  इस तन  जर्जर ने,
            शोक व्याप्त है, इष्ट मित्र, परिवार जनों में,
            श्वेत कफन की चादर बुन कर दी बुनकर ने l
आदि काल से यहाँ यही क्रम चलता आया,
प्रात उदित है सूर्य, शाम ढलते  ही  पाया l
इसीलिये  हर स्थित में, हम  गुनते  रहते,
विविध रूप  से  वस्त्र सदा हम बुनते रहते l

Monday 21 May 2018

बीते युग को छोड़, नये युग का निर्माण करो.


बीते युग को छोड़, नये युग का निर्मार्ण करो,
आने वाले कल का तुम बढ़ कर सम्मान करो l
“बीती   ताहि विसारो”  का  सिद्धान्त हमारा,
किन्तु नहीं हम गत को भूलें,उसका मान करो l

Sunday 20 May 2018

मीलों चले गरीब, सिर्फ भोजन को पाने,


मीलों चले गरीब, सिर्फ भोजन को पाने,
मीलों चले अमीर, सिर्फ बस उसे पचाने l
भोजन मिलता उसे, जिसे विश्वास रहा है,
चलता रहे फकीर, खुदा को ही वह माने l

मीलों चले गरीब, सिर्फ भोजन को पाने,


मीलों चले गरीब, सिर्फ भोजन को पाने,
मीलों चले अमीर, सिर्फ बस उसे पचाने l
भोजन मिलता उसे, जिसे विश्वास रहा है,
चलता रहे फकीर, खुदा को ही वह माने l

Friday 18 May 2018

रात जागते ही रहें,

                    रात जागते ही रहें, रोगी, कामी, चोर,
                    केवल कायर,दीन ही, सदा मचाते शोर l
                          लोभ और निर्लज्यता, गर्व संग है क्रोध,
                          मानवता की राह  में, वे बनते अवरोध l 

Thursday 17 May 2018

बहता पानी स्वच्छ और निर्मल होता है,


 बहता पानी स्वच्छ  और निर्मल होता है,
 आगे बढने  का प्रयास  प्रतिपल  होता है l
 सागर कब किसको मिठास दे पाया जग में 
 ठहरे पानी  में  अक्सर  दलदल  होता है l

Wednesday 16 May 2018

सदा रहे निस्वार्थ भावना,




             सदा रहे निस्वार्थ भावना, हो  जग  का कल्याण,
             सतत साधना के ही बल पर,बनती निज पहिचान,
             सहें यातना, किन्तु ह्रदय में, भारत माँ  का मान,
             कर्मठ, सदा  साहसी जग  में  पाते  हैं  सम्मान  
             कर्मठ, सदा  साहसी जग  में  पाते  हैं  सम्मान.  


Tuesday 15 May 2018

राम कथा



   राम कथा  में आपने, किया अगर  गुण गान,
 निश्चित फल तुमको मिले, हो समाज में मान l
                     योग,यज्ञ,जप,तप सभी, व्यर्थ उपाय तमाम,
                     बिना परिश्रम किये ही, मिल सकते श्री राम l
                                                                     डा० हरिमोहन गुप्त 

Monday 14 May 2018

परछाईं के पीछे भागो, नहीं पकड़ में आये,


                  परछाईं   के पीछे भागो, नहीं  पकड़  में  आये,
                  उसे छोड़  कर  आगे जाओ, तो  वह  पीछे धाये,
                  माया, ममता, और तृषा  का  यही हाल है मानो,
                  उसके प्रति बस मोह छोड़ दो, मन आनन्द समाये l  

     

Sunday 13 May 2018

क्या करना धन जोड़ कर, निर्धन के धन राम,




             
                       क्या करना धन जोड़ कर, निर्धन के धन राम,
                       मृदु वाणी अरु सत्य से, बस रक्खो तुम काम l


                                   डा० हरिमोहन गुप्त 

Saturday 12 May 2018

राम नाम


                  राम कथा जिसने लिखी, लिया राम का नाम,

                  राम रंग  में  रंग गया, माया का क्या काम l
                                                 
                                                                   डा० हरिमोहन गुप्त 

Friday 11 May 2018

अंहकार तजो


सघन वृक्ष ही सदा उखड़ते, वेत सलामत सदा रही है,
सहज नम्रता और समर्पण, कारण बनता बात सही है l
पर्वत को भी चीर सकी है, सरिता अपनी राह बनाती,
अहंकार को तजो,सफलता मिलती है,यह बात कही है l

Thursday 10 May 2018

रसना भज श्री राम को,यदि चाहो उद्धार,


रसना भज श्री राम को,यदि चाहो उद्धार,
 सदा कर्म में लीन जो, उसका बेड़ा पार l
 सच्चे मन से राम को,जो भी करता याद,
 कार्य सफल होते सभी ,उपजे नहीं विवाद l

चन्दन हर पोधा महकाये जो समीप है,

चन्दन हर पोधा महकाये जो समीप है,
 जग को जो आलोकित कर दे वही दीप है l
 पत्थर चोट सहे, पर फल दें वृक्ष यहाँ पर,
 पानी पी कर मोती उगले वही सीप है

उठो देवियो सुबह हुई,


उठो देवियो सुबह हुई, आलस को त्यागो
बहुत देर सो लिया,समय है अब तो जागो।
        पौराणिक इतिहास पढ़ो, बल है यह जानो,
        दुर्गा, सीता, सावित्री हो, यह तो मानो।
        रणचण्डी बन कर तुमने ही संहार किया है,
सोया साहस, शोर्य कला को तो पहिचानो।
अंग प्रदर्शन ,भडकीले वस्त्रों को त्यागो,
इष्र्या, द्वेष, दम्भ, कपट से अब भागो।
        क्यों दहेज उत्पीड़न होता आज तुम्हारा,
        जल कर मरना,शेष बचा है ऐक सहारा,
        केवल बहुयें जलें,आज हम सब यह मानें,
        लगता आज परिस्थितियों से जीवन हारा।
नर भक्षी हैं,सभी, तुम्हें ये नोच खायेंगे ,
मेरी मानो, अब मिसाइल को इन पर दागो।
 चौराहों पर छेड़ छाड़ कर तुम्हें सताना,
तुम पर अब तेजाब फेकना, काम घिनोना।
 कब तक यह उत्पीड़न होगा, जरा सोचिये,
बलात्कार कर तुम्हें मारना, और भगाना।
अब साहस को तुम बटोर, निर्भीक बनो तो,
आत्म सुरक्षा शासन से इस हक को माँगो।
बनो चावला, फिर से तुम अब बनो कल्पना,
वेदी किरण सरीखा साहस ही बटोरना।
इंदिरा गाँधी बन कर तुमको आज दिखाना,
 निष्ठा, लगन, परिश्रम, लाये नई चेतना।
          केवल शिक्षा दे सकती है नई उॅचाई,
          हो कर के निर्भीक, समय है अब भ्री जागो।
          लिया, समय है अब तो त्यागो।