मैनें तो बस गीत
लिखे हैं, इनको तुम अपना स्वर दे दो,
मैं तो आकार दिया है, जीवित रहने
का वर दे दो
l
भाषा पर प्रतिबन्ध नहीं हो,
छंदों से अनुबन्ध नहीं हो,
स्वर,लय,गति सब साध
सकूं मैं,यह आशिष झोली भर दे दो l
उड़ पाऊं उन्मुक्त
गगन में,
ऐसे आकांक्षा है
मन में,
एकलव्य जन जन बन
जाये,
हर योद्धा अर्जुन बन जाये,
लक्ष्य भेद मैं
भी कर पाऊं, ऐसा
कोई तुम शर दे दो l
करनी का फल सब भरते
हैं,
मरने को तो सब मरते
हैं,
मर कर भी जिन्दा
रह पाऊं, जीने का ऐसा
वर दे दो l
हो सुखान्त तुम खो
कहानी,
मुखरित हो जाये यह
वाणी ,
सुख समृद्ध ही रहे प्रवाहित, सरिता उद्गम निर्झर दे
दो l
सत्य अहिंसा के
अनुयायी,
जीवन भर यह शिक्षा
पाई,
सीमा पर
कोई ललकारे, उसके वध हित
खन्जर दे दो l
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,
इसाई,
आपस में
सब भाई भाई,
ऐक क्षत्र
में रह पायें सब, ऐसा
रहने को घर
दे दो l
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