महाभारत के एक पात्र एकलव्य की
गुरुभक्ति पर अधिकतर लेखकों ने लिखा है पर अँगूठा कट जाने के बाद उसकी मनः दशा
क्या रही होगी इस पर लिखा यह काव्य अपना अलग स्थान रखता है l
आज ‘अर्जुन’ , ‘द्रोणाचार्य’
सम्मान तो मिलते हैं पर एकलव्य जैसे पात्र को भी सम्मानित किया जाना चाहिए इस ओर
शासन का ध्यान आकृष्ट किया है l
“अग्रिम पंक्ति न मिल पाए बस वह तो रहा उपेक्षित ,
शिष्य न माना तदपि दक्षिणा,
फिर क्यों रही अपेक्षित l
एकलव्य
के प्रश्न शान्ति सुख, छीने हैं यह अनुभव,
अनउत्तरित यदि बने रहे तो,प्रगति नहीं है सम्भव l
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