रुको
नहीं बढ़ते चलो, मंजिल होगी पास,
तुम उंचाई छू सकोगे, मन में यदि विश्वास l
करते
यदि हरि स्मरण, मिल जाता मनमीत,
अब पछताना व्यर्थ है, जुड़ी न उससे
प्रीति l
महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धान्जलि--
एक प्रश्न जाग्रत था
मन में,
मानव क्या जिन्दा रहता है,
मर कर भी इस जग में ?
रुक जाती है श्वास.
हृदय स्पन्दन रुकता,
लेकिन कुछ के वाणी के स्वर,
गूँज रहे रग रग में |
मेरा कुछ ऐसा विचार है,
प्राणी के ही कर्म और गुण जिन्दा रहते,
मिट्टी की यह देह मरे,मरे जाए तो क्या?
जग के सम्मुख वाणी के स्वर,
मानवता जिन्दा रहती है |
जब तक हममें,
सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,
धरा पर धर्म कहाए,
विश्व बन्धु का पाठ, परस्पर प्रीत बढ़ा कर,
सुख समृद्धि, शान्ति हित जीवन,
सन्तत ऐसी फसल उगाये |
हिन्दू,मुसलमान, ईसाई,
हरिजन को भी गले लगा कर,
कहें परस्पर भाई भाई,
ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,
तो गान्धी जिन्दा हैं मानो,
हम सबके ही तन में |
इसीलिए तो शायद गांधी नहीं मरे हैं,
नहीं मरेंगे |
युग युग तक उनके चरणों में,
जाने कितने शीश झुकेंगे |
डा0 हरिमोहन गुप्त
लोभ मोह को त्याग कर, करते जो सत्संग,
धन्य वही चढ़ता जिन्हें, राम भक्ति का रंग l
चार शत्रु ये प्रबल हैं, काम,क्रोध ,मद,लोभ,
जो इनसे बच कर रहा, नहीं सताता क्षोभ l
लोभ मोह को त्याग कर, करते जो सत्संग,
धन्य वही चढ़ता जिन्हें, राम भक्ति का रंग l
चार शत्रु ये प्रबल हैं, काम,क्रोध ,मद,लोभ,
जो इनसे बच कर रहा, नहीं सताता क्षोभ l
लोभ मोह को त्याग कर, करते जो सत्संग,
धन्य वही चढ़ता जिन्हें, राम भक्ति का रंग l
चार शत्रु ये प्रबल हैं, काम,क्रोध ,मद,लोभ,
जो इनसे बच कर रहा, नहीं सताता क्षोभ l
आया है नया वर्ष, करते हम अभिनन्दन,
हम से जो अग्रज हैं, उनका करते वन्दन।
छोटों को शुभाशीष, मंगलमय हो जीवन।
प्रेम सदाफूले बस, हम सब उत्साही हों,
प्रगति मार्ग जो भी हो, उस पथ के राही हों,
हम उँचाई छू लेंगे, नित प्रयास हों नूतन
।
गत को हम क्या देखें, देखें हम आगत को,
उत्सुक है नव प्रभात,हम सबके स्वागत को।
शुभ चिन्तक जो भी हैं, देखें हम अपनापन,
आया है नया वर्ष, करते हम अभिनन्दन।
जग में प्रसिद्धि के कीर्तिमान तोड़े हम,
भर दें उजयारे को, छूट जाये सारा तम।
मिट जाये अहंभाव, धुल जाये अन्तरमन।
द्वेष, बैर भूलें सब, छोटों को अपनायें,
प्रेम बीज बो कर हम,बगिया को महकायें।
मन मन्दिर अपने ही, बन जायें वृन्दावन।
ज्ञानवान, बुद्धिमान,प्रभा ओजस्वी हों,
शरदं शतं जीवेत, आप सब यशस्वी हों।
विनती है प्रभु से बस, बन जायें वे साधन।
उत्तर से दक्षिण तक,हिन्दी सब की भाषा,
पूरबसे पश्चिम तक, सुदृढ़ रहे यह आशा।
हिन्दी की प्रगति हेतु, जुट जायें ज्ञानी जन।
शत