जो कृतज्ञ,संयम प्रमुख, हो संकल्प महान,
जिसकी जो सामर्थ हो. उतना करिये दान l
धर्म नित्य,सुख दुख अनित, नहीं रहेगा दोष,
छोड़ अनित,नित में रहे, तो मिलता सन्तोष l
मिथ्या आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम
धन संग्रह नहिं धर्म से, उसका करिये त्याग,
यथा सर्प
की केचुली, नहीं लगेगा
दाग l
धर्म पन्थ में बाँट कर, हमें किया बर्वाद,
ऐक नहीं
होने दिया, उपजा वादविवाद l
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