Thursday, 30 January 2025

 

जब तक हममें,

सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया का भाव,

धरा पर धर्म कहाए,

विश्व बन्धु का पाठ, परस्पर प्रीत बढ़ा कर,

सुख समृद्धि, शान्ति हित जीवन,

सन्तत ऐसी फसल उगाये |

हिन्दू,मुसलमान, ईसाई,

हरिजन को भी गले लगा कर,

कहें परस्पर भाई भाई,

ऐसे स्वस्थ विचार अगर जीवित हैं मन में,

तो गान्धी जिन्दा हैं मानो,

हम सबके ही तन में |

इसीलिए तो शायद गांधी नहीं मरे हैं,

नहीं मरेंगे |

युग युग तक उनके चरणों में,

जाने कितने शीश झुकेंगे |

       डा0 हरिमोहन गुप्त

 

Wednesday, 29 January 2025

                                                               धर्म  ओढ़े  ढोंग का  ही  आवरण,

अर्थ है निज स्वार्थ  मे  अंत:करण |

मोक्ष को तुमही बतादो क्या कहें हम,

काम का जब  कर रहे हम अनुशरण.


Tuesday, 28 January 2025

केवल यादें शेष, आत्म सुख था बचपन  में,

बोझा ढो ढो चले, कटा  यौवन  बन्धन  में.

बीती ताहि विसार सोच  लें  शुभ हो कल ही,

बस सुख से कट जाय बुढ़ापा प्रभु चिन्तन में.

  

Monday, 27 January 2025

 

मीठी बातें बगल छुरी  का  यही अर्थ है,

मिले  अनादर, तिरिस्कार होता अनर्थ है.

घुटनों के बल चले,किसी को वह ललकारे,

बन्दर घुड़की सुनी, सोच लो सभी व्यर्थ है.

Sunday, 26 January 2025

मजहब हमारे भिन्न, मगर धर्म ऐक हो,

धरती पवित्र  माँ है, इरादा तो  नेक हो l

अनेकता  में   ऐकता, सिद्धान्त हमारा,

                                                      बलिदान के हित ऐक नहीं तुम अनेक हो l 

Saturday, 25 January 2025

बिन सत्संग विवेक नहीं  हो, ऐसा कथन सटीक  रहा है,

इसीलिये सत्संग करो तुम, “ज्ञान बिना गुरुयही कहा है.

वह ही  मार्ग प्रदर्शक  बन कर, सीधी सच्ची राह दिखाता,

गुरु का उपदेशामृत पाकर, बिन प्रयास ही प्रभु मिल जाता.

  

Friday, 24 January 2025

सत्य क्या है, झूठ  का पृष्ठावरण,

कर्म है जब स्वार्थ का ही आचरण.

लोभ  ने  अपना बढाया कद यहाँ,

क्रोध का  क्या कर सकेंगे संवरण.

  

Thursday, 23 January 2025

होड़ लगी है  आज जगत में, कैसे  हम आगे आ जाएँ,

कुचल रहे हैं  पीड़ित प्राणी, लेकिन  वे  हमको बहकाएं.

गिरते गिरते जो  भी  उठते, सच मानो  वे  आगे बढ़ते,

                                          नहीं आदमी जो अपने हित, बहका कर जग पर छा जायें. |

Wednesday, 22 January 2025

 

जीवन  में  संघर्ष  मात्र  गैरों  अपनों  का,

और मरण अनबूझ पलायन भ्रमित जनों का.

लड़ना, थकना तो घटना क्रम  है जीवन का,

बस प्रभु  में  ही  लीन रहे, उद्देश्य जनों का.

Monday, 20 January 2025

 

कवि ही ऐसा प्राणी है जो, गागर में सागर को भरता,

वह केवल दो शब्दों में ही, सारा जग आकर्षित करता l

कहना उसका असरदार है,सम्मोहित हो जाता जन मन,

वेश कीमती दौलत उसकी, सारी दुनियाँ  वह खरीदता l

 

सरल, सरस है, और सोच में  जग कल्याणी,

कोई सोचे  उसे  झुका  ले, वह  अभिमानी l

यों तो कवि साधक, भावुक है, अपने ढंग का,

सदा सत्य  का  पक्षकार, निर्मल  वह प्राणी l

 

देश, परिस्थिति और काल का, जिसको रहता ज्ञान,

साहस, शौर्य जगाने  का  ही, जो करता अभियान l

वैसे  तो वह सरल प्रकृति का, प्राणी है इस जग में

कवि मिटता है आन वान पर, यह उसकी पहिचान |

 

चित्र सजाता, रंग भरता अपने ही रंग से,

दूर रहे  वह, खून खरावा और  जंग से l

वह कुरीतियों से लड़ता  है, स्वविवेक से,

अपनी बात सदा रखता है, सही  ढंग से l