---अधोपतन—
डा० वासुदेव शरण मिश्र कानपुर विश्व विद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष थे,
अच्छे लेखक, कवि और विचारक थे | साहित्य
जगत में अच्छा नाम था | उनके लेख, कवितायें अच्छे साहित्यक पत्रों में छपते थे, उनकी लगभग
पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित थी | विश्व विद्यालय से अवकाश ग्रहण पश्चात सोचा प्रकृति
के सानिध्य में दिन व्यतीत करूँ और लेखन को नई दिशा दूँ यही सोच कर अपने पैतृक
गाँव में आगये, सुबह शाम अपने खेतों को देखना शेष समय में साहित्य साधना में लीन
रहना यही दिन चर्या थी |
देहली से एक दिन उनके मित्र का फोन आया “डाक्टर साहब पिछले सप्ताह चांदनी
चौक में सडक किनारे कबाड़ी की दुकान में देख रहा था कि आपकी किताब “हम नदिया की
धार” तौल के हिसाब से तीन रूपये में मिल गई, बहुत अच्छी लगी, जीवन का अतीत,वर्तमान
और भविष्य की कल्पना को आपकी लेखनी ने जिस प्रकार गीतों के माध्यम से पिरोया है,
लगता है यह आम आदमी की बात है | इस पुस्तक को आपने जिसे ससम्मान भेंट की थी उस
व्यक्ति का नाम और आपके हस्ताक्षर अंकित है” मेरा प्रणाम सहित धन्यवाद |
डाक्टर साहब सोच रहे थे कि लेखन की यदि यह स्थिति है तो अब और लिखूं या लेखन को विराम दूँ |
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