लघु कथा
दीपाली की नियुक्ति
सहायक अध्यापिका के रूप में नगर में हुई थी |उसका अध्यापन कक्ष दूसरी मन्जिल पर था
और वह सीढियाँ चढ़ रही थी किउसकी द्रष्टि नीचे की ओर गई, ऐक पोलियो ग्रस्त बालक
वाकर की सहायता से सीढियाँ चढ़ रहा है तो उसने सोचा वह गिर न पड़े इसलिये वह सीढियाँ
उतर कर उसके पास आ गई,उसका हाथ पकड़ कर सहारा दिया और कहा “ घवड़ाओ नहीं मैं
तुम्हारी टीचर हूँ,तुम्हें सहारा दे कर ऊपर ले चलती हूँ”, वह बालक ऐक तो मौन रहा फिर बोला
“मेडम! मैंने तो आपसे कोई सहायता नहीं मांगी है” वह बोली “अच्छा यह बात है तो क्या
मैं तुम्हारी मित्र बन कर सहायता कर सकती हूँ” बालक बोला “मेरे पापा कहते हैं
जिसको जिन्दगी के सामने सबसे अधिक चुनोतियाँ होती हैं, वही आगे तक जा सकता है”
इसलिये मुझे बिना किसी की सहायता के अपनी चुनोतियों का सामना स्वयं करना चाहिए”,
इससे आत्म विशवास बढ़ता है और सोच भी द्रढ़ होती है” दीपाली ने कहा “आज मुझे तुमसे बहुत कुछ सीखने को मिला है” |
“ लगन, परिश्रम, सतत साधना जो अपनाते हैं,
सच मानो
तो वही लक्ष्य को छू
पाते हैं”
आगे बढो और सीढियाँ
स्वयं चढो, तभी उच्च शिखर पर पहुँच सकोगे, मेरी शुभ कामनाएं तुम्हारे साथ हैं |
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