लघु कथा
ऐ.के.जोहरी
को इनकमटेक्स आफिसमें प्रेक्टिस करते हुये अभी एक वर्ष ही हुआ
था,7,8 फाइलें थी उसी में सन्तोष था | ऐक दिन सुनने को मिला कि इन्कमटेक्स कमिश्नर
की तबियत बहुत खराब है, ऐक सप्ताह से अधिक हो गया है बुखार ही नहीं उतर रहा है,
नगर के बड़े बड़े वकील एंव सी. ऐ. फलों के टोकरे ले कर उन्हें देखने जा रहे थे, कोई
कहता यहाँ नहीं पी.जी.आई. लखनऊ ले चलें मैं सब प्रबन्ध कर दूँगा, एक ने कहा देहली
के अपोलो अस्पताल में मेरे रिश्तेदार डाक्टर हैं, ऐ.सी.फर्स्ट में आप लोगों के
टिकट कराये देता हूँ, वहां एम्बूलेंस मँगा लेगें मैं भी आप लोगों के साथ चलूँगा | जोहरी
ने सोचा मैं भी देख आऊं पर फलों का टोकरा पाँच सौ से कम में न बनता था, क्या करें
फिर भी वह देखने पहुँच गया, अन्दर उनकी पत्नी के पास जा कर बोला “आंटी मैं परसों
मेह्यर की देवी से प्रार्थना करने गया था, वहाँ पुजारी ने यह तावीज दिया है, इसे
आप कमिश्नर साहब की तकिया के के नीचे रख दीजिये”| दवा का असर कहें या तावीज की
करामात, अब कमिश्नर साहब का बुखार कम होने लगा और तीन दिन में बुखार सामान्य हो
गया, एक सप्ताह में कमजोरी भी ठीक हो गई |
अब क्या था जोहरी साहब अगले एक वर्ष में बड़े बड़े
वकीलों से
भी आगे बढ़ गये थे |
( जिस दिन जोहरी
तावीज दे कर आये उसी दिन एक वकील ने
उनसे पूँछा (यार तुम
तो रोज यहीं रहे फिर मेह्यर की देवी कब हो
आये, जोहरी ने कहा “क्या करता? मेरे पास फलों के टोकरेकी जुगाड़ तो थी नहीं,
यहीं मानिक चौक से पाँच रुपया में तावीज खरीद कर दे आया था ) |
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