Thursday, 28 May 2020

सम्मानित हैं आप

सम्मानित हैं आप
सम्मानित हैं आप, सुरा पी  लें  मन चाही,
मेरी क्या  मैं  अक्सर दर्द पिया  करता हूँ.
तुम समर्थ हो, कोरे आश्वासन  दे  सकते,
फटे हाल  मैं, अपने  फर्ज  किया करता हूँ.
            राम राज्य हो, ऐसा गांधी का था सपना,
            रहें बराबर  सभी यहीं, भारत  है अपना.
            उनका जो था  स्वप्न, नहीं पूरा हो पाया,
            होड़ लगी है यहाँ आज, अपना घर भरना.
अमन चैन हो बस समाज में, इसीलिये तो,
औरों के दुख, अपने नाम  लिया करता हूँ.
            सबका साथ, विकास बहुत अच्छा है नारा,
            करें आचरण, तो  होगा  कल्याण हमारा |
            सत्तर सालों से तो  हम सब  देख रहे हैं,
            आज आदमी क्यों?  फिरता है मारा मारा.
देख देख कर गतिविधियाँ, जन प्रिय नायक की,
आश्वासन  का  कडुआ घूँट  पिया   करता हूँ.
            वादे  होंगे  पूरे  यह तो  सब  कहते  हैं,
            कब होंगे? बस इस पर तो वे चुप रहते हैं.
            आगे बढना है तो हम सब त्याग करेंगे,
            कुछ पाना है, पहिले कष्ट सभी सहते हैं.
फटे हुये कुरता पाजामा हैं अब जन जन के,
स्वयं बैठ  कर  मैं पेबन्द सियां  करता हूँ.
           सम्मानित हैं आप, सुरा पी  लें  मन चाही,
           मेरी क्या  मैं  अक्सर दर्द पिया  करता हूँ.
डा० हरिमोहन गुप्त, अध्यक्ष हिन्दी साहित्य सम्बर्धन

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