Sunday, 12 July 2020

saamyik doha

समस्या पूर्ति दोहा     द० हरिमोहन गुप्त
              “सामाजिक”
भाई ,भाई से लड़ें, अलग अलग  हों द्वार,
अपना घर बंट जाय तो ,कब रहता है प्यार l
  कल तक सबमें प्रेम  था, आदर  था सदभाव,
 अलग अलग अब हो गये, बदले सभी स्वभाव l
आँगन में दीवाल हो, सभी चाहते आज,
अपने अपने रास्ते, अपने अपने काज l
      तार तार ही हो रहे, अब सितार के तार,
      ऐसे घर  भी कलह से, हो  जाता बेजार l
मात, पिता को बाँटते, कैसे  हो निर्वाह,
कैसे हम रह पायंगे, कहाँ गई वह चाह l
     
 बंटबारा ऐसा किया, हुई परिस्थिति दास,
 माता रक्खें आप ही, पिता  हमारे पास l
पास पड़ोसी कह रहे, देख  हमारे ढंग,
देखो इनके भी हुये, चेहरे अब भदरंग l
       कैसे सिर ऊँचा करें, झुके  हमारे शीष,
       यही चाहते सभी, मन में थी यह टीस l 
सास बहू में हो रहा, आपस में टकराव,
घ में पंचायत जुड़ी, बना रहे सदभाव l
    सास बहू में हो रही, अब तो नित तकरार,
    पुत्र तुम्हारा है कहाँ,  पति  अब  दावेदार l
दोनों में कोई नहीं, झुकने को तैयार,
पिता,पुत्र भी मौन हैं, देख रहे हैं रार l
 

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