पानी रखो सँभाल, नजरों से यदि गिर गया,
समझो आया काल, बिना मौत ही वह मरा |
ऐसा
करो प्रयास, आँखों में
पानी रहे,
प्रभु जी आते पास, निर्बल को सम्बल मिले |
पावस ऋतु
पावस
ऋतु का आगमन, मन में उठे हिलोर,
चंहु दिश
ढूढू उसी को, कंहा रहा चितचोर |
सोंधी खुशबू आ रही, होती है
बरसात,
हरयाली बिखरी यहाँ,मन प्रसन्न हो जात |
दादुर स्वर लगते भले, बिजली चमके रात,
पानी बरसे जब यहाँ, सच में सभी सुहात |
मोर नाचती देख कर, गाऊं मैं मल्हार,
आओ नाचें हम सभी, पावस चले
बयार |
प्रिय के बिन पावस ऋतु, लगती है बेकार,
मैं सजधज कर क्या करूँ, क्यों पहिनूं मैं हार |
बादल काले देख कर, मन
भी होत उदास,
छवि उसकी ही उभरती, आ जाये
वह पास |
नभ में बादल जब कभी, लिख जाते हैं नाम,
उसकी छवि ही प्रगट हो, दिख जाते घनश्याम |
डा० हरिमोहन गुप्त
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