Tuesday, 13 October 2020

 

आज पीड़ा हो गई इतनी सघन,

नीर बन कर अब बरसना चाहियेl

    चारों तरफ ही मच रहा कुहराम है,

       शान्ति को मिलता नहीं विश्राम है,

       आज रक्षक ही यहाँ भक्षक हुये,

       देश की चिंता जिसे, गुमनाम है l

कर्ण धारों के हुये मिथ्या कथन,

पन्थ कोई अब बदलना चाहिये l

       रोज हत्या का बढ़ा है अब चलन,

       छवि यहाँ धूमिल, हुआ उसका क्षरण,

       हम कहाँ, कैसे, बताओ रह सकें,

       आज हिंसक हो गया है आचरण l

यह समस्या आज देती है चुभन,

हल कोई इसका निकलना चाहिए l

        प्रांत सब ज्वालामुखी से जल रहे,

        आतंक वादी अब यहाँ पर पल रहे,

        कोन रह पाये सुरक्षित सोचिये,

आज अपने ही हमी को छल रहेl

दर्द है, कैसे करें पीड़ा सहन,

कोई तो उपचार करना चाहिये l

         आज भ्रष्टाचार में सब लिप्त हैं,

         घर भरें बस, दूसरों के रिक्त है                        

         दूसरे देशो में अब धन जा रहा,

         देख लो गाँधी यहाँ पर सुप्त है |

क्या करें, कैसे करें,इसका शमन,

प्रश्न है तो हल निकलना चाहियेl

       देश तो अब हो गया धर्म आहत,

         बढ़ रहा है द्वेष, हिंसा, भय, बगावत, 

         आज सकुनी फेकते हैं स्वार्थ पांसे,

          एकता के नाम पर कोई न चाहत l

किरकिरी है आँख में देती चुभन,

कष्ट होगा पर निकलना चाहिए l

          देश हित में सब यहाँ बलिदान हों,

          विश्व गुरु भारत रहे, सम्मान हो ,

          सत्य का सम्बल सदा पकड़े रहें,

          एकता में बंध, नई पहिचान हो l

आज सबसे है, यही मेरा कथन,

एक जुट हो कर, सुधरना चाहिये l

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