बेलेन्टाइन डे
बेलेन्टाइन डे
मना, हो गई उनसे
भूल,
एक अपरचित को दिया, बस गुलाब का फूल |
उनसे बोली वह प्रिये, बैठो मेरे पास,
बेलेन्टाइन डे रहा, होना है कुछ ख़ास |
चलो चलें होटल प्रिये , बैठेंगे एकान्त,
बातें होंगी प्यार की, मन भी होगा शांत |
नोट हजारा
चढ़ गया, बस उसके ही नाम,
क्या
करता वह विवश था, उसका काम तमाम |
घर आ कर वह सोचता, कहां हुई वह भूल,
क्यों मैंने उसको दिया, वह गुलाब का फूल |
यद्यपि बिगड़ा था बजट, किन्तु फरवरी मास,
दो दिन
कम थे मास में, अब होता आभास |
मार्च अगर होता कहीं, तो उड़ जाते होश,
डा० हरिमोहन गुप्त
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