रिश्ते में जो भी अपने
थे, देखो, अब सब आम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत,
हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
मैने वह ही चादर ओढ़ी, जिसमें अपने पाँव
समायें,
चादर कर दी मैली मेरी, बोलो कैसे मन
को भायें ?
कर्जदार हैं वे औरों
के, लेकिन घर में दाम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत,
हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
जब तक सुख सुविधायें बाँटीं, लोग जुड़े
हम से ही आ कर,
आज दिवाला निकल गया तो, वही पा रहे
सुख अब जा कर l
जो निर्धन थे, वे कुवेर हैं,श्रद्धा के वे धाम हो
गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत,
हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
जिसने साथ दिया उसको ही, धक्का देकर
आगे आये,
हाँ में हाँ ही सदा मिला कर, उल्लू
सीधा वे कर पाये l
चरण वन्दना के ही बल
पर,अब तो वे श्रीराम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत,
हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
- Dr. Harimohan Gupt
- Dr. Harimohan Gupt
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