Saturday, 28 October 2017

रिश्ते में जो भी अपने थे, देखो, अब सब आम हो गये,

रिश्ते में जो भी अपने थे, देखो, अब सब आम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
             मैने वह ही चादर ओढ़ी, जिसमें अपने पाँव समायें,
             चादर कर दी मैली मेरी, बोलो कैसे मन को भायें ?
कर्जदार हैं वे औरों के, लेकिन घर में दाम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l

               जब तक सुख सुविधायें बाँटीं, लोग जुड़े हम से ही आ कर,
               आज दिवाला निकल गया तो, वही पा रहे सुख अब जा कर l
 जो निर्धन थे, वे कुवेर हैं,श्रद्धा के वे धाम हो गये,
कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l
                जिसने साथ दिया उसको ही, धक्का देकर आगे आये,
                हाँ में हाँ ही सदा मिला कर, उल्लू सीधा वे कर पाये l
चरण वन्दना के ही बल पर,अब तो वे श्रीराम हो गये,

कहाँ जानते लोग हकीकत, हमीं यहाँ बदनाम हो गये l 


- Dr. Harimohan Gupt

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