प्रभु जी, हरते सबकी
पीर,
सभी दुखी हैं, सभी
व्यथित हैं,
सब ही बड़े अधीर l
काम, क्रोध से जो बच
पाते,
क्षमा, शान्ति को जो
अपनाते,
वे ही सन्त फकीर l
लोभ, मोह, माया का
चक्कर,
इसीलिये तो भटके दर
दर,
भर नैनों में नीर l
कर्म करो, फल उस पर
छोड़ो,
विषय वासना से मुँह
मोड़ो,
बदले तब तकदीर l
तुम जोड़ो सच से ही
नाता,
जो मन से प्रभु के
गुण गाता,
माथे लगे अबीर l
कोन थाह पा सकता
उसकी,
करता वह परवाह सभी
की,
सागर सा गम्भीर l
सबका दाता, सबका
प्यारा,
सत्य सदा शिव,सबसे
न्यारा,
उसको सबकी पीर l
जिसने गाया, उसने
पाया,
उसने भी सबको
अपनाया,.
तुलसी, सूर, कबीर l
उसका नाम जपेंगे हम
सब,
फिर पीड़ा क्यों होगी
जब तब,
मन में रख तू धीर l
प्रभु जी, हरते सबकी पीर l
- Dr. Harimohan Gupt
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