कैसे हम आगे बढ़ें, लगी हुई है होड़,
अपनों को पीछे करें, सब मर्यादा तोड़ l
झूठ फरेबी सब करें, छोड़ें शिष्टाचार,
चापलूस बन कर वही, करते भ्रष्टाचार l
मन्दिर मस्जिद बँट रहे, अपनापन है दूर,
मानवता के नाम पर, सब कुछ चकनाचूर
छोटी के
आगे बड़ी, खीचें सही लकीर,
यों विकास के रंग भरें, सुन्दर हो तस्वीर l
ऐक दूसरे पर
यहाँ, छींटा कसते रोज,
जनता यों ही देखती, सभी मनाते मौज l
No comments:
Post a Comment