मिथ्या
आग्रह, कटुवचन, करे तीर का काम,
स्वाभाविक यह प्रतिक्रया, उल्टा हो परिणाम
धन संग्रह नहिं धर्म से, उसका करिये त्याग,
यथा सर्प
की केचुली, नहीं लगेगा
दाग l
धर्म पन्थ में बाँट कर, हमें किया बर्वाद,
ऐक नहीं
होने दिया, उपजा वादविवाद l
वे दोनों तो ऐक हैं, क्या रहीम क्या राम,
हम
में ही दुर्बुद्धि है, इसीलिये कुहराम l
मिटटी की यह देह है, सब में ज्योति समान,
क्या हिन्दू, क्या मुसलमा, क्यों होते हैरान l
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