माँ
मेरी ममता मयी मातु, तुमको प्रणाम है,
धरा धाम में, जग में ऊँचा धन्य नाम है l
गीले में सो कर, सूखे में मुझे सुलाया,
धूप शीत से बचने को आंचल फैलाया l
लोरी गा कर, मेरे मन को नई बहलाया,
कैसे बीत गया बचपन मैं जान न पाया l
निशि वासर सेवा करना ही सदा काम है,
ऐसी ममता मयी मातु तुमको प्रणाम है l \
तुमने तो कर्तव्य सहज ही सदा निभाया,
अधिकारों का क्या प्रयोग, इसको विसराया l
सीमित इच्छाओं में रह कर मन समझाया,
सबके सुख का ध्यान रखा, उसमें सुख पाया l
अबलम्बन बस सदा ऐक ही रहा राम है,
ऐसी ममता मयी मातु तुमको प्रणाम है l
सुख समृद्धि परिवार जनों की हो मन भाया,
व्रत उपवास किये जीवन भर,प्रभु गुण गाया l
मेरे हित जप, तप, कीर्तन ही सदा सुहाया,
अमृत बाँटा और गरल ही गले
लगाया l
नित्य भजन, पूजन का क्रम ही सुबह शाम है
ऐसी ममता मयी मातु तुमको प्रणाम है l
बैठ जिस महफिल में उसमें रंग
जमाया,
राम नाम का,विविध रंग में
भजन सुनाया l
राम कथा गा,गाकर सबको यह
समझाया ,
बृह्म सत्य है, और जगत है
मिथ्या माया l
मन्दिर की चौखट से नाता अष्ट याम है,
ऐसी ममता मयी मातु तुमको प्रणाम है l
छोड़ चली तुम मुझे, गला मेरा
भर आया,
पुनर्जन्म में मुझे मिले बस
तेरी छाया l
सब कुछ दे कर मुझे,जली धू
धूकर काया,
माँ की काया को मुखाग्नि ही
मैं दे पाया l
माँ तेरे बिन सूना मुझको धरा धाम है,
ऐसी ममता मयी मातु तुमको प्रणाम है l
अम्ब !आपके आदर्शो को मैं
अपनाता,
कर्तव्यों प्रति रहूँ
समर्पित यह मन भाता l
यही माँगता प्रभु से अक्षणु
रखना नाता,
श्रृद्धा सुमन सदा चरणों
में रहूँ चढाता l
सीख स्वर्ग देती रहना,यह गुलाम है,ऐसी ममता मयी
मातु तुमको प्रणाम है
No comments:
Post a Comment