Monday, 5 August 2019

मैं क्या लिखता राम लिखाता,


मैं क्या लिखता,राम लिखाता,वही स्वयम लिख जाता l
उर  में  वह  ही भाव जगाता, श्रेय मुझे मिल जाता l
           मैं  भजता  हूँ  राम नाम को, बस  उससे है  नाता,
           अगर अँधेरा  पाता  मग  में, वह  ही  राह दिखाता l
मेरा  जीवन राम भजन  में,  सच  मानो कट जाता,
क्या लेना इस लौकिक जग से,दुख में भी सुख पाता l
           सब आडम्बर छोड़ जगत के, मन  को  यह समझाता.
           जीवन धन्य  मानता  मैं  हूँ, बस  उसके  गुण गाता l
निराकार  है, निरालम्ब  है, वही  ऐक  है  ज्ञाता,
जितना उसे चलाना मुझको, उतने पग  धर पाता  l
           ऊँगली  मेरी  कर  में  पकड़े, वह  ही  भाग्य विधाता,
           लोभ, मोह  का  चक्कर छोड़ो, क्यों  मन  को भरमाता ?
जीवन थोड़ा, पल दो पल का, क्यों कुभाव उपजाता ?
जो भी आश्रित उस पर रहता, नहीं कभी  दुख पाता l
           मुझको  को  तो  सन्तोष  यही  है, मेरा  उससे  नाता,
           दान पुण्य  मैं  नहीं  जानता, मन  में  सुख  उपजाता l
अन्त समय में सच मानो तुम,सबका भाग्य विधाता,
भव सागर  में  नाव फंसी  तो, वह ही पार लगाता l      

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