मैं क्या लिखता,राम
लिखाता,वही स्वयम लिख जाता l
उर में
वह ही भाव जगाता, श्रेय मुझे मिल
जाता l
मैं
भजता हूँ राम नाम को, बस उससे है
नाता,
अगर अँधेरा पाता
मग में, वह ही राह
दिखाता l
मेरा जीवन राम भजन
में, सच मानो कट जाता,
क्या लेना इस लौकिक
जग से,दुख में भी सुख पाता l
सब आडम्बर छोड़ जगत के, मन को यह
समझाता.
जीवन धन्य मानता
मैं हूँ, बस उसके
गुण गाता l
निराकार है, निरालम्ब है, वही ऐक है ज्ञाता,
जितना उसे चलाना
मुझको, उतने पग धर पाता l
ऊँगली मेरी
कर में पकड़े, वह
ही भाग्य विधाता,
लोभ, मोह का
चक्कर छोड़ो, क्यों मन को भरमाता ?
जीवन थोड़ा, पल दो पल
का, क्यों कुभाव उपजाता ?
जो भी आश्रित उस पर
रहता, नहीं कभी दुख पाता l
मुझको को
तो सन्तोष यही
है, मेरा उससे नाता,
दान पुण्य मैं
नहीं जानता, मन में
सुख उपजाता l
अन्त समय में सच
मानो तुम,सबका भाग्य विधाता,
भव सागर में
नाव फंसी तो, वह ही पार लगाता l
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