जग में,दो दिन का यह नाता,
प्राणी,क्यों मन को भरमाता l
जब तक साँस चले जीवन की,
तब तक आस रहे इस तन की,
तब तक साथ निभाता,
प्राणी,क्यों मन को भरमाता l
बन्धु, सखा सब यहीं रहेंगे,
भार्या संग सब यहीं जियेंगे l
पुत्र न संग में जाता,
जग में,दो दिन का यह नाता l
जब तक इस शरीर में बल है,
नाता तब तक
ही केवल है,
कोई न फिर सहलाता l
इस शरीर की सुन्दर काया,
मृग मरीचका सी यह माया,
धू धू कर जल जाता,
प्राणी,क्यों मन को भरमाता l
माया, ममता छोड़ो प्राणी,
केवल प्रभु ही हैं कल्याणी,
वह ही सबका दाता,
प्राणी, क्यों मन को भरमाता l
जैसी करनी, वैसी भरनी,
पार करे वह
ही वैतरणी,
सदा सत्य जो गाता,
जिस दिन प्राण निकल जायेंगे,
साथी संग न चल पायेंगे,
मरघट तक पहुंचाता l
कोई संग न जाता l
जग में दो दिन का यह नाता.
प्राणी, क्यों मन को भरमाता l
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