लघु कथा
सास बहू की रोज रोज
की चिकचिक से तंग आ कर राकेश ने माँ को वृद्धाश्रम में भरती करा दिया, भरपूर पैसे
उस आश्रम को देता कि माँ को किसी प्रकार की परेशानी न हो, लेकिन माँ का मन उस
आश्रम में नहीं लगता था | आज उसका पुराना नौकर रामू जो अब ऐक ढावा चलाता है, उस
आश्रम में साहब की माँ को देखने आया, माँ ने रोते रोते रामू से कहा “रामू मझे इस
आश्रम से निकाल कर अपने घर ले चल मैं वहां सुख से रह लूंगी” रामू ने कहा “ मालकिन
कहाँ आप और कहाँ मैं, यहाँ पर आप को सभी सुविधायें हैं, मैं तो ऐक ढावा चलाता हूँ,
वही रात में घर बन जाता है, जैसे तैसे जिन्दगी चल रही है” इस पर माँ ने कहा “अगर
मन में आनन्द नहीं तो कोई सुख नहीं, तुम साहब को मत बताना” मैं भी आश्रम के मैनेजर
से कहे देती हूँ कि पैसा तुम्हें राकेश से मिलता रहेगा, लेते रहना यदि कभी वह
पूंछे तो कह देना की आश्रम के खर्चे से माँजी हरिद्वार गंगा स्नान करने या तीर्थ
करने गई हैं |
राकेश की माँ रामू के ढावे पर आ गई और भोजन बनाने की जिम्मेदारी ले कर
सहायकों के साथ दिन में काम में जुट जाती, रात्रि में सुख पूर्वक सोती | अच्छा भोजन बनने के कारण रामू का ढावा चल पड़ा,
दूर दूर से लोग भोजन करने के लिये आते |
राकेश भी महीने में चार छै बार इसी ढावे में आते और अपना मन पसन्द भोजन
करते, विशेष बात यह कि राकेश को कभी बताने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, बिना बताये ही
उन्हें वही भोजन जो उन्हें पसन्द आता था मिल जाता था |
राकेश का आज आफिस के काम में मन नहीं लग रहा था, घर से आया लंच बाक्स न खोल कर रामू के ढावे पर आगया, रामू
ने देखा तो पानी पिलाने के बाद कहा साहब खाना लगा दूँ, आज राकेश का मन भोजन में
कढ़ी चावल खाने का था पर उन्होंने रामू से
कुछ कहा नहीं बस इतना ही कहा भोजन तो करना ही है | थोड़ी देर बाद थाली में वही सब
कुछ था जिसे उसका मन चाह रहा था | रामू बोला “साहब और कुछ लाऊँ, आप खाइये इसके बाद
मैं आपके लिये अदरक की चाय और पकोड़े लाऊँगा”| चाय पीने के बाद राकेश ने कहा “रामू
तुमने अपने ढावे में बहुत अच्छा कुक रक्खा है, सच मानो जब भी आता हूँ, मुझे वही खाना मिल जाता
है, कभी बताने की आवश्यकता नहीं पड़ी, मैंने कई बार कहा कि अपने कुक से मिलवाओ मैं
उसे ईनाम देना चाहता हूँ, पर तुम कभी मिलवाते ही नहीं, आज मैं तुम्हारी कुछ भी
नहीं सुनूँगा, मैं स्वयं रसोई में जा कर उससे मिलूँगा | राकेश ने जब अन्दर जा कर
देखा तो उसकी ओर पीठ किये हुये माँ खड़ी थी | राकेश ने कहा माँ तुम यहाँ हो, हर बार
सोचता था कि यह तो केवल माँ ही जान सकती है की उसके पुत्र को आज क्या खाना है, चलो
अब घर चलें मैं ही गलत हूँ, सोचता था कि आश्रम में तुम सुख से रहोगी, पर सच तो यह
है कि जो सुख और आनन्द घर में है वह अन्यत्र नहीं हो सकता | चिक चिक क्या तुम्हारे
साथ क्या मेरे साथ होती ही रहेगी पर मैं न तुम्हें छोड़ सकता और न तुम्हारी बहू को,
कुछ तुम बहू को समझाना और कुछ मैं तुम्हारी सहायता करूंगा |
No comments:
Post a Comment