Saturday, 18 September 2021

प्रभु की कृपा अपार

  सुनो जी प्रभु की कृपा अपार,

     निस्पृह हो कर कर्म करो तुम,यह गीता का सार l

     गूँगे  बोलें, बधिर  सुन सकें, पंगु चलें पथ भाई,

     राई  को  पर्वत  कर  देता,  पर्वत  करता क्षार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार  l

     पल  में  राजा रंक बने, या रंक  बन सके राजा,

     अदभुत  लीला  उसकी  भाई, जाने  ना  संसार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     अपने कर्मो  का फल ढोता,  हो   करके लाचार,

     उसकी  कृपा अगर मिल  जाये, होता बेड़ा  पार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     मिथ्या जग यह  माया ठगनी, दर दर भटक रहे हैं,

     जो  जिसका प्रारब्ध मिले  बस, ऐसा  करो विचार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     “सत्य वद धर्ममचर “ श्रुति का है  सिद्धान्त सदा से,

      इसका  ही  तुम पालन  कर लो, बाकी सब बेकार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     जीवन थोड़ा काम अधिक  है, ऐसा  ही तुम जानो,

     प्राणी कर  सत्कर्म  यहाँ पर, करता  मैं  मनुहार l

     सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l

     काम  क्रोध  को  जीत, मोह  माया  को  त्यागो,

    मान  गये  यदि  बात  हमारी,  हो  जाए  उद्धार l

    सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l    

9

मैं क्या लिखता,राम लिखाता,वही स्वयम लिख जाता l

उर  में  वह  ही भाव जगाता, श्रेय मुझे मिल जाता l

   मैं  भजता  हूँ  राम नाम को, बस  उससे है  नाता,

  अगर अँधेरा  पाता  मग  में, वह  ही  राह दिखाता l

मेरा  जीवन राम भजन  में,  सच  मानो कट जाता,

क्या लेना इस लौकिक जग से,दुख में भी सुख पाता l

  सब आडम्बर छोड़ जगत के, मन  को  यह समझाता.

 जीवन धन्य  मानता  मैं  हूँ, बस  उसके  गुण गाता l

निराकार  है, निरालम्ब  है, वही  ऐक  है  ज्ञाता,

जितना उसे चलाना मुझको, उतने पग  धर पाता  l

 ऊँगली  मेरी  कर  में  पकड़े, वह  ही  भाग्य विधाता,

लोभ, मोह का  चक्कर छोड़ो, क्यों  मन को भरमाता ?


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